आफिस से घर आकर जैसे ही टीवी खोला, वहां एक मासूम सी तीन दिन की जख्मी बच्ची को दिखाया जा रहा था जिसे उसके माता पिता ने उसे तीन दिन पूर्व नहर में फेंक दिया था। उसकी किसमत अच्छी थी कि वह बच गई लेकिन उसके पैरों एवं बॉडी के अन्य हिस्सों पर कीड़ों ने काट रखा था। वह बुरी तरह से रो रही थी, उसका करहाना ऐसा था कि दिल दर्द से भर उठा। नहर में फेंकने के पीछे वही कारण होगा जो अभी तक रहा है। कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन हम सब, हमारा समाज अभी समझ नहीं रहा है, जिस दिन उसे समझ आयेगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। यह घटना फरीदाबाद की है।अभी कुछ माह पहले भी हरियाणा में ही ठीक ऐसी ही घटना हुई थी, मैंने वो खबर रात को लगभग 11 बजे देखी थी। रात भर सो नहीं सकी, कुछ विचार मेरे मन में आये, जो मैंने अपने ब्लाग पर डाल दिये थे, लेकिन मेरा सवाल है यह है ब्लाग पर लिखने से क्या होगा ?
क्यों फैंका गया मुझे नहर में
औरत मर्द के देह सुख से उपजी हूं मैं
उस औरत मर्द के लिये मैं कुछ भी नहीं थी
इसी लिये उन्होंने मुझे फैंक दिया नहर में
फैंके जाने के बाद फंसी झािड़यों में
और आ गई किसी नजर में
फैंके जाने का दर्द है बहुत बड़ा दर्द
मेरे जिस्म पर भी और मन पर भी
लोग कह रहे हैं
अब मेरी दुनिया बदल रही है
हो सकता है सही कह रहे हों
कल पता नहीं क्या हो,यह दर्द कम हो जाये या जानलेवा हो जाए
मुझे नाम मिल गया है
करूणा
हरियाणा की करूणा
कोई गोद भी मिल जायेगी
फिर भी मैं सोचूंगी
आखिर मुझे क्यों फैंका गया नहर में
क्या मैं बेटी थी इस लिये
वो बेटी जो भाई के लंबी उमर के लिये दुआ करती है
वो बेटी घर आंगन का करती है ख्याल
अपनी आखिरी सांस तक
मनविंदर भिम्बर
10 comments:
पता नही ऐसा क्यों होता है लगता है कि लोगो के बाजुओ में जान नही। इसलिए शायद वे अब भी बेटा बेटी में फर्क करते है।
ye sach me badi vimabna hai ki hum vaise to modren hone ka dum bharte hain lekin yahan aaakar hum fir dakiyanusi ho jaate hai.
vaise aapne apne shabdo me jo dard dikhaya hai vo sach me speechless hai.
ब्लॉग पर लिखने से क्या होगा ?
-ये सवाल कइयों के मन में कई बार आ चुका होगा। पढ़े-लिखे लोगों के एक तबकों के कथनी और करनी में चाहे जितना भी अंतर क्यों न हो, उनके भीतर का सच उनके लेखन से बाहर आ ही जाएगा। लेखनी के कम ही कलाकार ऐसे होंगे जो नेताओं की तरह अपने भीतर कुछ और ही रच रहे होंगे। एक तरह से ब्लॉग कन्फेसन का जरिया-सा बन जाता है।
रही बात समस्याओं पर पढ़कर अमल में लाने की,तो आप ये मानकर चलिए कि यदि एक भी पाठक के मन में किसी का भी लेख पढ़कर सच्ची संवेदना जग गई, तो अमुक का लिखा सार्थक हो गया। इसलिए सिर्फ तलवार से ही क्रांति(या सुधार) नहीं लाई जा सकती।
(भाषण्ा-सा लगा हो तो क्षमा)
मासूम बच्ची को लेकर अपने विचारों को शब्दों में ढालकर आपने बहुत अच्छा किया।
अच्छा लेखन लोगों के अंदर अच्छे विचार जरूर जगाता है। इस तरह के लेखन से प्रभावित होकर कई बार संस्थाएं अथवा जरूरतमंद भले लोग इन मासूमों के लालन-पालन के लिए आगे आते हैं।
अच्छे विचार और संवेदन शीलता हमेशा दिल में जगह बनाती है और यही कार्य अच्छा लेखन करता है ..सो कुछ बहुत न हो पर .शायद एक उम्मीद है की किसी के सोये दिल को यह जगा दे .कि बेटा बेटी दोनों एक से हैं .फर्क क्यूँ है फ़िर इतना
हरियाणा की ही बात नही है. बाकी जगहों पर भी ये ही सब हो रहा है. औरत ने जनम दिया मर्दों को, गीत की पंक्तियाँ आँखें नम कर देती हैं, लेकिन जब बेटी को नाहर में डाला जा रहा था, तब एक औरत की सहमती भी उसमे रही होगी. उसने अपने कलेजे के टुकड़े को नाहर में फैकने की इजाजत कैसे दे दी. देखें तो औरत भी इन हालातों के लिए कम जिमेदार नहीं हैं. वे भी बेटा नही होने पर बहु का जीना हराम कर देती हैं.
ये सच में भीतर तक हिला देने वाली घटना है. अपने इसे इतनी संजीदगी से लिखा, इसलिए बधाई की पत्र हैं. लेकिन समाज को इन घटनाओं पर गंभीरता से सोचना होगा. औरत के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नही नही की जा सकती. उसके प्रति ये भाव बेहद दुखद है.
पता नही बेटे-बेटी का फर्क कब खत्म होगा और कब लोग बेटियों की हत्या करना बंद करेंगे। कैसे माँ-बाप अपनी संतान को मार सकते है ये सोचकर ही मन विचलित हो जाता है।
ऐसी घटनाओं को पढ़ कर मन जड़ हो जाता है..यकीन नही होता कि एक ही पल मे हम संवेदनशून्य भी हो जाते है ... मन विचलित हो जाता है कि क्या उपाय किया जाए कि समाज मे ऐसा न हो...
aap likhti rahiyr sabko ahsaas hoga .
aap likhti rahiyr sabko ahsaas hoga .
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