Saturday, June 5, 2010

देवता तो हमारे अन्दर ही बसते हैं ....नजर की जरूरत है

काया विज्ञान का एक बहुत प्यारा सा हवाला एक जगह मिलता है . जब परमात्मा ने सब देवता पैदा कर लिए तो उन्हें धरती पर रहने के लिए भेज दिया .....वहां रहने के लिए उन्हें सुन्दर स्थान चाहिए था . आहार भी चाहिए था . वे फिर लौट कर परमात्मा के पास गए और अपनी समस्या उनके सामने रखी ......तो परमात्मा ने इंसानों की ओर इशारा करते हुए कहा ....तुम सब वहीँ रहो और अपना स्थान खोज लो. परमात्मा का आदेश पा कर देवता ने वाणी बन कर मुख में परवेश किया.....वायु बन कर प्राणों में. सूर्य देवता ने आँखों में स्थान ग्रहण किया . दिशा देवता ने कानों में तथा ब्रहस्पति देवता ने काया के रोम रोम में और चन्द्र देवता ने ह्रदय में अपना स्थान बना लिया .......देवता इन्सान की देह में ही वास करते हैं.....यह भी सच है की सही भोजन न करने से ये तत्व कमजोर पड़ जाते हैं और देवता मूर्छित पड़े रहते है ....... __________________________________ आज जब में ऑफिस के लिए विशवविद्यालय के सामने से गुजर रही थी तो मुझे वहां किताबों का एक स्टाल दिखा ..अमृता प्रीतम की लिखी हुई किताब "अक्षरों की अंतर्ध्वनि" मुझे स्टाल पर मिल गई.....यह किताब जून १९९० में सूचना एवं प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित की गई थी.....मात्र १५ रूपये की ये किताब मेरे लिए बेशकीमती है ...... काया विज्ञान की कुछ पंक्तियाँ आपसे शेयर कर रही हूँ ......उम्मीद करती हूँ ......आपको पसंद आएँगी .