ये कैसे दिन हैं
पैर लकीरों से बाहर चलना चाहते हैं
कंधे संस्कारों के बोझ से मुक्त होना चाहते हैं
माथे पर मोहब्बत का परचम नहीं
बस शिकन है
शिकवे शिकायत की गूंज है
आंखों के खुश्क समंदर में कोई ख्वाब नहीं, किरच है
ये कैसे दिन हैं
पैरों के नीचे गरम गारा है
कदम कदम पर हवा में तलखियां हैं
लेकिन पैरों को जल्दी है नजर की सरहद से पार जाने की
ये कैसे दिन हैं
मन में मोह नहीं, बस रोश है
दिल में तूफान है, लपट है
कहीं चैन नहीं, टिकाव नहीं, नींद नहीं ख्वाब नहीं
खाली उदासी हैं, दिल उचाट है
ओ योगी, बता तो ये कैसे दिन हैं
क्यों हर पल गुजरे पल की तरह गुजरता है
गुजरा पल क्यों सूल सा चुबता है
मन की नाजुक माटी में आने वाला पल
क्यों खंजर की नोक का इंतजार करता है
एक अजीब खलिश से सने ये अलफाज किसी खोये हुए ‘ाायर की डायरी के हैं