Monday, April 18, 2011

बस ...... यूँ हीं याद आ गयी

तुम अपनी भावनाओं को कितनी चालाकी या समझदारी से छिपा लेते हो ...... याद है ....स्टेशन पर जब एक डोगी रेल से कट कर दो टुकड़ों में तड़प रहा था ....मेरा तो हाल खराब हो रहा था .....दिल में घबराहट से बुरा हाल हो रहा था .....गले में बोल अटक रहे थे ......हाथ से चाय का गिलास गिर गया .... यूँ कहूँ की मैं अपनी घबराहट छिपा नहीं पा रही थी ......तुम शांत दिख रहे थे......कहीं तकलीफ तुम्हें भी थी ..... एक बेजुबान की हालत पर ......लेकिन तुमने केवल इतना ही किया .....अपनी चाय को शांत भाव से रेलवे ट्रेक पर गिरा दिया और प्लेटफार्म की बेंच पर बैठ गये...... ____ बस यूँ ही याद आ गयी इस घटना की .........

Friday, April 8, 2011

मंगलपांडेय के लिए ये प्यार नहीं तो और क्या है ?

अकसर जब हवाओं का रूख मोडऩे वाले पैदा होते हैं या यूं कहिए कि क्रांति की आंधियां चलती हैं तो उसमें यह नहीं देखा जाता है कि उसका सिरमौर कौन है ? देखा जाता है तो उस कारवां को जिसमें लोग जुड़ते चले जाते हैं और वो करवां जब अपने मुकाम को हासिल कर लेता है तो इस बात पर गौर किया जाता है कि कारवां कहां कहां से गुजरा ? उसमंे कौन कौन लोग शामिल थे ? 1857 की क्राति भी कुछ एेसी ही थी जो एक कारतूस से शुरू हुई थी। इस क्रांति में पहली शहादत मंगलपांडेय की थी, इसी वजह से मंगलपांडेय को शहर में वही सम्मान मिलता है जो आज इस क्रांति से जुड़े शहर के दूसरे लोगों को मिलता है। मंगलपांडेय वह पहला क्रांतिकारी था जिसने चर्बी लगे कारतूस का विरोध किया था। इसी के बाद कारतूस का विरोध औघडऩाथ मंदिर पर 34 वीं देशी पैदल सेना ने किया था। कारतूस का विरोध ही आगे चल कर बहुत बड़ी क्रांति का कारण बना। भ्रांतिवश लोग यह मानते हैं कि मंगलपांडेय ने मेरठ छावनी में कारतूस का विरोध किया था। इतिहाकारों की मानें तो एेसा कोई सबूत नहीं मिलता है जो इस बात को पुख्ता करेें कि मंगलपांडेय कभी यहां आए थे। वास्तविकता यह है कि सिपाही नंबर 14४6 मंगलपांडेय 34 वीं देशी पैदल सेना के सैनिक थे जो बैरक पुर तैनात थी। यह जगह आज वेस्ट बंगाल में है। मंगल पांडेय ने पहली बार बैरकपुर में ही अंग्रेज अधिकारी पर आक्रमण किया था। इतिहासकार एस के मित्तल के अनुसार 29 मार्च 1857 को मंगलपांडेय को मंदिर में शपथ दिलायी गई थी। यह बात सच के आसपास समझी जाती है क्योंकि 1857 की क्रांति के दौरान अकसर हर समुदाय को धर्मस्थल पर ही शपथ दिलायी जाती थी। शपथ के बाद मगल पांडेय ने ह्यूसन व एक अन्य अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बाघ को जख्मी कर दिया। देश की आजादी के लिए अंग्रेज पर जो सबसे पहला हाथ उठा था, वह मंगलपांडेय का था और वो उस समय अकेला था। यह बात आज तक रहस्य बनी हुई है कि अंग्रेजों ने मंगलपांडेय को काफी टार्चर किया तथा उसे अपने साथियों के नाम बताने के लिए दबाव बनाया लेकिन उन्होंेने किसी एक का भी नाम नहीं बताया और स्वयं आत्मघात करने की कोशिश की लेकिन अंग्रेजों ने एेसा होने नहीं दिया। मंगलपांडेय का कोर्ट मार्शल हुआ तथा एक्जीक्यूशन आर्डन नं. 28५ के हतत 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5.३0 बजे उन्हें फांसी लगा दी गई। इस प्रकार भारतीय सशस्त्र क्रांति का पहला नायक मंगलपांडेय शहीद हो गया। इसी के बाद मेरठ में 1857 की क्रांति की लहर चली और 10 मई को इसका असली रूप देखने को मिला।