Wednesday, March 31, 2010

मुद्दत बाद .....उम्रें ठहर गईं

मुद्दत बाद ......उम्रें ठहर गईं
उनकी नजरें मिलीं .......एक दूसरे को देखा , जैसे तपती गर्मी में ठन्डे पानी के घूंट भर लिए हों ।
पर ये क्या , उनकी प्यास तो वैसे ही धरी हुई थी ।
वो दिन , वो घडी , वो पल ऐसे गुजरा जैसे वो मेले में हैं ..... मेले के हिंडोले में अपनी उम्रों को बैठा कर हिलोर दे रहें हों । और वो दोनों उस पल, उस घडी और उस दिन के देनदार बन गये । अगले ही पल उन्हें हिंडोले से उतरना था । मेले से चले जाना था । उन्हें गम नहीं था । उन्होंने मेला मना लिया था । मेले की मिठाई चख ली थी । अब तो उन्हें अपने-अपने अरमानों की तह लगा कर रखनी थी।
फोटो गूगल से साभार

Monday, March 29, 2010

अपनी आंख के श्राप को क्या कहूँ .....

ईश्वर की ऑंख ईश्वर के चेहरे पर हो तो वरदान है, लेकिन इन्सान के चेहरे पर लग जाए तो शाप हो जाती है .....अपनी आंख को क्या कहूँ ........
कभी कभी ये श्राप मेरी आंख को लग जाता है ..... कई बार ......
उस दिन भी वही हुआ ......
उस दिन .......
थाने के कंट्रोल रूम में बेठी तीन लड़कियां ......मीडिया के फ्लेश बार बार क्लिक किये जा रहे थे .....खाकी वर्दी वाले ने पूछा ......धंधा करती हो क्या ?एक लड़की ने कहा .... नहीं साहब ....में तो अपनी मौसी के पास रहती हूँ बाकी की दो लड़कियां रोये जा रहीं थी .....वो तीन लड़कियां .....जो १४ साल से भी कम की रही होंगी .......सवाल पे सावल .....हर जवाब में आंसुओं का सैलाब .........
और शाम को उन्हें नारी निकेतन भेज दिया गया .......कुछ दिन बाद मौसी उन्हें से ले गई उसी दुनिया में...... जहाँ जिस्म के सौदागर आते है

Friday, March 26, 2010

दो सहेलियां ....एक देह में रहती हैं

दो सहेलियां

एक दूसरे की साथी
दो सहेलियां
एक , एकांत में जागती है
एक ,एकांत में सोती है
सोने वाली जागने वाली से ऑंखें चुराती है
जागने वाली सोने वाली को उलाहना देती है
सोती , सोती क्या है
ऑंखें चुराती है
जागती , जागती क्या है
खुली आँखों से जंगल उगाती है
उन्हीं जंगलों में घूमती है
दो सहेलियां
एक ही देह में रहती हैं
साथ साथ
दुःख कुरेदती हैं