Sunday, June 28, 2009

......और नज्म अडोल खड़ी रह गई

रात जब जाग गई तो ...... अपनी ही लिखी नज्म ...... सिरहाने आन खड़ी हुई ...... नींद से बेजार आंखों ने ...... नज्म के फिक्रे के पीछे .......... छिपे साये को देखा.......... साया चुपचाप ....... गारे के इतिहास में उतर गया ........ दबी यादों को कुरेदने लगा........ सिले जख्मों के धागे ....... उसने नज्म के हवाले कर दिये ........... नज्म के होंठों में कंपन देख ........ साया फिक्रे में ......... जा मिला ........ और ..... नज्म अडोल खड़ी रह गई .........

Wednesday, June 24, 2009

उधड़े हालात सिलती ... ........वो लड़की

वो लड़की ........ जो हर वक्त अपने घर के कच्चे आंगन में बैठी बड़े ध्यान से उधड़े हुए हालात सीती रहती है। इस कदर ध्यान से सीने काम करती है कि लगता है , धागा खुद ब खुद कपड़े पर उगता चला जा रहा है। दिल कहता है...... दुआ भी एक धागा है जिससे बंदे का रब से सिला जुड़ा रहता है। दुआ के कई रंग हैं , धागों की तरह । जो धागे सिर्फ ख्चाहिशों की मांग के रंग से रंगे रहते हैं , उन धागों से काढ़ी गई दुआ के रंग अलग से होते हैं लेकिन जिन रंगों पर रब की मोहब्बत का रंग चढ़ा होता है , उनसे काढ़ी गई दुआ की खुशबू आती है। दुआ की छांव में बैठ कर कुछ मांगना जरूरी नहीं है, इस छाव में छिपे हुए खूबसूरत सफर की आहट सुनना भी खास है। वो लड़की, बहुत कुछ सिखाती है। वो लड़की , रब सरीखी मोहब्बत की बेल काढ़ रही है। मोहब्बत की गलियों की धूल बुहार रही है उस लड़की को यकीन हैं..... कभी तो वो आयेगा...... यहां कदम रखेगा......