Sunday, December 28, 2008

यह ख्याल है या जिक्र भर तेरा

सुबह सवेरे
कोहरे में सब कुछ
धुंधला गया
गुलाब का बूटा
जिससे महकता था आंगन
दरख्त जहां पलती थी गर्माहट
मोड़ जहां इंतजार का डेरा था
कुछ भी तो नहीं दिख रहा
सब धुंधला गया
दिल पर हाथ रखा तो
वह धड़क गया
तेरे ख्याल भर से
सोचा
यह ख्याल है या जिक्र भर तेरा
तुम कहते हो
मैं कहीं गया नहीं, यही हूं तेरे पास

Wednesday, December 10, 2008

तुम कहते हो `आंखें खोलो´

एक तुम हो
जो पानी पर भी उकेर देते हो मन की भावनाएँ
एक मैं हूं
जो कागज पर भी कुछ उतार नहीं पाती
तुमने अकसर झील के पानी पर
पहाड़ और पेड़ ऐसे उकेर दिये
जैसे झील पर उग आया हो एक संसार
झील पहाड़ और पेड़
मैं खोती रहती हूं इनमें
और देखती हूं अपने अक्षरों को
झील में तैरते हुए
पहाड़ पर चढ़ते हुए
पेड़ पर लटके हुए
तब तुम कहते हो
`आंखें खोलो´
पर नजरें कैसे मिलायूं
उस पल

Monday, December 8, 2008

उसकी छुहन में है तेरी ही खुश्बू

वक्त ने मुझे समझाया
तब बड़ी मुश्किल से
हामी भरी थी तुम्हें भेजने की
भारी मन से गाड़ी सजायी
प्यार की झालरें लटकायीं
तुम्हें रवाना किया
खिड़की से जब जाती गाड़ी देखी
तो उसमें तुम अकेले नहीं थे
और वो वक्त कर गया मुझे उदास
सोचें बंट गई दो खेमों में
एक उदास तो दूसरी समझदार
उदास को समझदार ने कहा
उदास न हो
जरा ऊपर देख
प्यार की झालरों पर है तेरा नाम
उसकी छुहन में है तेरी ही खुश्बू