Saturday, February 22, 2014

मैं एक दिन धूप में

मैं एक दिन धूप में
घर की दीवारों पर बैठ
घर की दीवारों की बातें
उसे सुना बैठा 
और उसका हाथ
दीवार से हमेशा के लिए
हटा बैठा 
उसका साथ
दीवारों से हमेशा के लिए
गवां बैठा

वो घर छोड़ने से पहले
उस दिन
हर कोने में घूमा
और गारे में खांस रही
बीमार इंटों के गले मिला
और उस मनहूस दिन के बाद
वह कभी घर न लौटा

अब रेल की पटरी पर जब कोई
खुदकुशी करता
या साधुओं का टोला
सर मुड़ा, शहर में घूमता है
या नकसलवादी
कत्ल करता है
तो मेरे घर की दीवारों को
उस समय ताप चड़ते हैं
और बूढ़े घर की बीमार

इंटों का बदन कांपता है
(एक दोस्त का दर्द मेरी डायरी से )

Friday, February 21, 2014

पता है मुझे

पता है मुझे कि तेरा दिल आबाद है
पर कहीं वीरान सूनी कोई जगह मेरे लिये?......