Wednesday, October 29, 2008

बादलों से उतरा एक नूर सा जोगी

बात सालों की है
दहलीज पर एक
जोगी आया
उसने मांगे कुछ अक्षर
पहले मैं सोच में पड़ गई
फिर
रब को याद किया और
मैंने दे दिये उसे अक्षर
उसने अक्षरोंकी माला गूंथी
आंखों से चूमी
और मेरी ओर बढ़ा दी
मुझे वो जोगी नहीं
बादलों से उतरा एक नूर सा लगा
मंत्रा के नूर से उजली हुई
वो माला मेरे सामने थी
मैं अडोल सी खड़ी रह गई
और सोचने लगी
कैसे लूं माला को
माला को झोली में लेने से पहले ही
मेरे पांव चल चुके कई काल
काल के चेहरे थे
कुछ अजीब
किसी के हाथ में पत्थर थे
तो किसी के हाथ में फूल
फिर अचानक
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में

Saturday, October 25, 2008

आखिर क्यों धमकाया किरण को लखनऊ पुलिस ने ?????

मैंने पिछली पोस्ट में किरण के बारे में आप सभी को बताया था। उसके बारे में जान कार कईयों ने कमेंट भेजे तथा किरण को प्रोत्साहित किया , उसके जज्बे को सलाम कहा। अब मुझे पता चला कि किरण के साथ लखनऊ पुलिस ने बुरा सलूक किया। उसे कहा गया कि मायावती उससे मिलना चाहती है लेकिन उसे उसके ठिकाने से जबरन उठा कर हजरतंज थाने में लाया गया , वहां उसका मोबाइल छीन कर उसके साथ बदसलूकी की गई, धमकाया गया तथा कहा कि अगर फिर उसने सीएम साहिबा से मिलने की कोशिश की तो उसका बुरा हश्र होगा। इस चेतावनी के साथ किरण को धकिया कर जबरन पुलिस की जीप में बिठा कर मेरठ उसके घर पहुंचा दिया। आप ही सोचें, एक दलित बेटी को अपनी बात कहने की कितनी आजादी देती है हमारी सरकार? किरण सिरफ यही तो चाहती है कि कन्या धन योजना को फिर से उत्तर प्रदेश सरकार शुरू कर दे। किरण ने मेरठ आते ही अपने आसपास के गांवों की लड़कियों को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया है। वह उन लड़कियों के साथ एक बार फिर से लखनऊ जाने के मूड में है।

Tuesday, October 21, 2008

किरण .......मेरठ की बहादुर बाला

किरण जाटव, जी हां! यही नाम है बहादुर बाला का। मेरठ की बाहरी बस्ती लाला मोहम्मदपुर की रहने वाली किरण को उस समय बड़ी तकलीफ हुई जब मायावती ने दलितों एवं गरीबों की बेटियों के लिये जारी योजना कन्या विद्या धन योजना को बंद कर दिया। किरण ने अपनी बात को मायावती तक पहुंचाने का नायाब तरीका खोजा और 14 अक्टूबर को सुबह चार बजे वह साइकिल से ही मायावती को मिलने के लिये राजधानी लखनऊ के लिये रवाना हो गई। जैसे तैसे वह 19 अक्टूबर को राजधानी पहुंच गई जहां उसे सीएम हाउस के गेट से यह कह कर लौटाने का प्रयास किया गया कि वह मायावती से नहीं मिल सकती। किरण कहती है कि वह मायावती के समक्ष अपनी बात रखे बिना नहीं लौटेगी। सोचने की बात है कि दलितों की कई ऐसी बेटियां हैं जिन्होंने कन्या विद्याधन योजना से अपनी शिक्षा पूरी की लेकिन जब योजना बंद हुई तो वे चुप बैठी रहीं , किरण चुप नहीं रह सकी। किरण अभी राजधानी में ही है। वहां के प्रशासन ने उसके जुनून की पहचान उसकी साइकिल को अपने कब्जे में ले लिया है। साथ ही उसे भी नजर बंदी सी हालत में ला कर खड़ा कर दिया है। बड़ी बात यह है कि जब किरण ने कन्या विद्याधन योजना को पुन: जारी करने के लिये आवाज उठायी तो उसका पहला विरोध परिवार की ओर से हुआ। उसे कहा गया कि वह लड़की जात है, चुप से बैठी रहे। अब आप ही सोचिए कि ऐसे हालातों में महिलाएं आगे आयें तो कैसे, अपनी बात आगे पहुंचाएं तो कैसे? दुखद तो यह है कि किरण उस प्रदेश की बेटी है जहां की मुख्यमन्त्री एक महिला है, उस शहर की बेटी है जहां की जिलाधिकारी एक महिला है, जहां की मेयर भी एक महिला है।

Wednesday, October 1, 2008

वक्त के साथ अक्षर गहरे हुए या फीके ....... ये वक्त जाने

अरसे बाद दराज खोला
कुछ धूल खाती चीजें मिली
टटोला तो कुछ मुड़े कागज भी मिले
जिन पर पहले कुछ लिखा
फिर लकीरें फेरी थीं
आंखों में वो अक्षर तैर आये
जिन पर लकीरें फेरी गई थी
वो अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
जहर को पीना चाहते थे
उन्होंने
आग को चूमा
जहर को पिया
फिर
दराज में कहीं दब कर रह गये
धूल खाने के लिये
वक्त के साथ
अक्षर गहरे हुए या फीके पड़ गये
ये वक्त जाने