Saturday, November 29, 2008

क्यों नाकाफी हुई सुरक्षा जेकेट

आज सुबह से ही खबरिया चैनलों पर लता जी का गाया गीत चल रहा है, ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी----- साथ में एटीएस के चीफ को दिखाया जा रहा है जिन्हें उनके साथियों ने हेलमेट पहनाया और सुरक्षा जैकेट पहनायी , उसके बाद वे ताज होटल में प्रवेष करते हैं, उनका सामना वहां आंतकवादियों से हुआ, कुछ ही घंटों बाद वे आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो जाते हैं, बैकग्राउंड में वही गीत, ऐ मेरे वतन की लोगो जरा आंख में भर लो पानी , जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

ये उन लोगों के सोचने का भी वक्त है जो रक्षा सौदों में दलाली खाते हैं। अगर रक्षा के लिये खरीदे कवच सचमुच सुरक्षित होते तो क्या आंतकवादियों की गोली एटीएस के चीफ के हेलमेट छेद सकती थी! क्या आतंकवादियों की गोली उनकी सुरक्षा जेकेट को छेद कर उनके सीने पर लग सकती थीं।

मैं नमन करती हूं उन सभी शहीदों को जिन्होंने हमारी सुख शान्ति के लिये अपनी जान की बाजी लगायी है।

Monday, November 24, 2008

हवा में लटकते हर्फ़

अमूमन
किनारों पर बैठी
लहरें बता देती हैं
कि तूफान आयेगा
ये लहरे हैं समंद्र की
मन की कोई लहर नहीं होती
न पानी के छड़ापे
बस
इक तूफान उठता है
जो पलकों पर आ कर
ठहरता है
दीखते है
हवा में लटकते हर्फ़
मैं उन्हें कागज पर रख देती हूं
कई बार ये हर्फ़ बर्फ से ठंडे होते है
तो कई बार सूरज का सेक लिए

Wednesday, November 19, 2008

ये रहमत थी या उसने उलाहना उतारा

इक सुबह
मेरे आंगन में आ गया
इक बादल का टुकड़ा
छूने पर वो हाथ से फिसल रहा था
मैंने उसे बिछाना चाह
ओढ़ना चाहा
पर
जुगत नहीं बैठी
फिर
बादल को न जाने क्या सूझी
छा गया मुझ पर
मैं अडोल सी रह गई
और समा गई बादल के टुकड़े में
पता नहीं
किस टुकड़े को ओढ़ा
और कौन सा बिछ गया
मैं सिर से पांव तख
नहा गई
ये रहमत थी
या उसने उलाहना उतारा
बस सोचती रह गई

Thursday, November 6, 2008

पुलिस की इस हरकत को क्या कहेंगे??????

आज का अखबार पढ़ा, एक युवक और युवती को पुलिस ने कार से पकड़ा। युवक को पुलिस ने पीटा और युवती को थाने में ले जा कर उसकी मां को बुला लिया। युवक और युवती की फोटो खींचने के लिये मीडिया को भी बुलाया गया। इसके आगे की कहानी आपको बताने की जरूरत नहीं, युवक को परेशान किया गया, युवती का भी अपमान किया गया. दोनों एक ही समुदाय के थे। पुलिस कहती है, कार पर काले शीशे चढ़े थे, इस लिये कार को पकड़ा, मुझे यह समझ नहीं आया कि अगर कार पर काले शीशे चढ़े थे तो इसके लिये निर्धारित जुर्माना होना चाहिए था, न कि युवक युवती का अपमान। यह भी कि कार कहीं अंधेरे में नहीं खड़ी थी, न ही युवक युवती कुछ गलत कर रहे थे। यह बात दीगर है कि दोनों बच्चों के बारे में उनके अभिभावकों को पता था या नहीं, लेकिन क्या पुलिस को ऐसी हरकत करनी चाहिए?????? क्या युवक युवती अगर दोस्त हैं तो उन्हें अपने घर में बता कर जाना चाहिए????? क्या माता पिता भी ऐसी घटनाओं के जिम्मेवार हैं जिनका अपमान हुआ ?????? बस एक छोटी सी बात बताना चाहती हूँ .....ऐसी ही एक घटना की किरदार ने अपमान से आहात हो कर आत्महत्या कर ली थी ...वो भी पुलिस की करतूत के कारण

Sunday, November 2, 2008

थमा हुआ है नीला आसमान न जाने किसके इंतजार में

ये रात कैसी आयी
खाली हाथ
न कोई ख्वाब
न ख्याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में