Monday, September 29, 2008
निमोलियों की खुशबुओं से सराबोर एक शाम
सेंटमेरीज स्कूल मेरठ के प्रतिष्टित स्कूलों में से एक है। २७ सितंबर को सेंटमेरी स्कूल ने अपने 200 वर्ष पूरे होने पर एक खूबसूरत शाम का आयोजन किया। इस ‘शाम की खास बात यह रही कि इसमें पुराने छात्रों को आमंत्रित किया था। इस समय के सेंटर कमान के जीओसी इन सी लेफि्नेंट जनरल एचएस पनाग भी इसी स्कूल के स्टूडेंट रह चुके हैं जो गुलपनाग के पिता भी हैं। वे भी इस ‘शाम को यादगार बनाने के लिये मौजूद रहे। मेरे दोनों बेटे भी इसी स्कूल से पासआउट हैं। मैं जब बच्चों की पेरेंट टीचर मीटिंग में जाती थी, उस समय की सारी बातें मुझे आज अनायास ही याद गई। स्कूल में आंवले और नीम के कई पेड़ खड़े थे जो आज भी हैं आंवले के सीजन में बेटों की जेबों में आंवले ही भरे रहते थे। बस्तें में निमोलियां भरी रहती। आंवले के दाग यूनीफार्म की ब्लू कमीज की जेब पर लगे रह जाते और निमोलियां बस्ते में पिचक कर अपनी खुशबू बिखेर देती। स्कूल की छुटृटी होने के बाद भी बच्चों का मन ग्राउंड से हटने का नहीं होता था। स्कूल के बाहर बाबू का ठेला रहता था, उससे कुछ न कुछ लिये बिना बेटे घर की ओर कदम नहीं बढ़ाते थे। अब बढ़ा बेटा पूना में है तो छोटा बेटा गुढ़गांव में। मैं सेंटमेरीज स्कूल में कई बार स्कूल के स्थापना दिवस एवं कई अन्य कार्यक्रमों को कवर करने लिये गई हूं लेकिन आज कई पुरानी बातें जेहन में उभरी। जिस समय स्टेज पर कार्यक्रम चल रहे थे, हवाओं में नीम और आंवलों की खुशबुयें तैर रही थीं। आंवले और नीम के पेड़ों ने मुझे बेटों के बचपन को याद दिला दिया। जैसे ये कल की बातें हों।
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17 comments:
"wah bhut sunder yaad deelaee apne, humare bhee school mey ek neem ka tree hua krta tha jiskee khusbu charo trf mehka kertee thee, or sub kehtey they kee neeboliyan khane se blood saaf hotta hai to jum kr khaya krty thye, bus ab to sunehree yaden hai jo kabee kabhee aise articals pdh kr fir aa jateen hain"
Regards
aapko bachpan aur mujhe yaad aa gayi prakruti ki saundhi godi
http://birdswatchinggroupratlam.blogspot.com
log on jaroor kijeeye
सुंदर विचार हैं आपके मेरा उत्साह बढानें की शुक्रिया
सुंदर वर्णात्मक विवरण आपके मेरे चिट्ठे पर पधारने हेतु बहुत बहुत धन्यबाद . कृपया अपना आगमन नियमित बनाए रखें
सुन्दर
Bahut khub.
बचपन के सुखद क्षणों की याद ,तन्हाई में बहुत राहत देती है
क्या बात हे मुझे निबोलिया याद दिला दी, मे पीली पीली निबोलिया बहुत खाता था, ओर कभी गलती सेहरी निबोली खा ली तो सब फ़ेंक देता था, आंबले का पेड कभी नही देखा.
आप का लेख पढ कर बचपन याद आगया,
धन्यवाद
बहुत बढ़िया विवरण.
शानदार | यादें बस यादें रह जाती है |
शानदार। बचपन की यादें कुछ यूं ही दिल को गुदगुदाती हैं।
mausam badalney ka pehlaa sandesaa ye junglee khushbuey hi phailaati hain
सुंदर मार्मिक आलेख
. मेरा आमंत्रण स्वीकारें मेरे चिठ्ठे पर भी पधारें
कुछ यादे यूँ भी साथ रहती है जो वक्त आने पर खुशबु बिखेर जाती है ...अच्छा लगा यह
आपने तो इस साज के कई तार एक साथ छेड़ दिए। बचपन, निंबोली, सावन, किश्ती और न जाने क्या-क्या याद आ गया।
पुरानी राहों, गलियों, स्कूल में जन हमेशा सुखद लगता है. मुझे भी अपने बचपन के घर के आँगन में खड़ा वो पेड़ याद आ गया, जिसके नीचे मौसम में ढेर सारी निम्बोलियां मिलती हैं. थैंक्स,
ye dolat bhi le lo, ye shohrat bhi le lo
bhle chhin lo mujhse meri jawani.
magar nujhko lota do wo kagaz ki kashti wo barish ka pani
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