Thursday, September 25, 2008
खालापार की शबाना को मंजूर नहीं है गुड़िया बनना
शबाना ने मीडिया के सामने आ कर साफ कर दिया है कि उसे कोई भी फतावा गुड़िया नहीं बना सकता है। आरिफ की गुड़िया ने समाज की सुनी और अपनी जान दे दी। शबाना ने बहादुरी से दो टूक जवाब दिया है कि वह अब डा अबरार की हो चुकी है। उसका अपना हंसता खेलता परिवार है। उसकी जिंदगी में किसी और के लिये कोई जगह नहीं है। किसी पंचायत का फैसला या फतवा उसके के लिये काई मायने नहीं रखता है। कितना भी हो हल्ला हो, वह आबिद के लिये सोच भी नहीं सकती है। 14 वर्ष पूर्व शबाना का विवाह आबिद से हुआ जरूर था लेकिन आबिद ने ‘शोहर का कोई भी फर्ज पूरा नहीं किया।उसे मुसीबतों में छोड़ गया. इस पूरे मामले में दिलचस्प यह है कि शबाना बहादुर बनी है तो उसके समर्थन में कई और महिलाएं भी आगे आ चुकी । उसके ग्राम लावड़ की महिलाओं ने एकजुट हो कर अपनी आवाज बुलंद कर दी है तथा कह दिया है कि औरत कोई खिलौना नहीं है जिसे मर्द अपने हिसाब से खेले और मन भर जाने पर फेंक दे। वहां की नगर पंचायत अध्यक्ष अनीसा हारून ने भी एक बैठक कर कहा है कि शबाना को जब आबिद ने तालाक दे दिया है तो अब वह देवबंद से कैसा फतवा ला रहा है। ‘शबाना की मां तो यहां तक कह चुकी है कि अब आबिद चाहे फतवा लाये या पंचायत करे, वह किसी की नहीं सुनेंगी। ‘शबाना अपने परिवार में ही रहेगी डा अबरार के साथ।
तो क्या यह मुस्लिम महिलाओं की ये नई आवाज है, मुसलिम समाज में एक नया बदलाव है, क्या मानते हैं आप? धार्मिक उलेमाओं को क्या करना चाहिए, औरत की निजता भी कोई मायने रखती है या नहीं?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
12 comments:
achchi post
बहुत अच्छी पोस्ट है...
स्वागत योग्य बदलाव है यह। आपको साधुवाद इस चर्चा के लिए।
बदलाव धीरे -धीरे ही आएगा।
बदलाव की बयार अब चल निकली है . और आज नही तो कल बदलाव तो होना ही .
अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद .
अच्छी पोस्ट. लिखती रहे.
बदलाव तो लगा इसको पढने से कुछ ..
काश हर औरत शबाना हो जाए।
सुन्दर!
शबाना को सलाम , बहुत सही किया, आप का धन्यवाद
kafi acha likha hai, aapki samvedna saaf dikhai de rahi hai. main aapke is vichar ka samarthan karta hoon.
शबाना के हौसले को सलाम। और ऐसी उत्साहवर्द्धक ख़बर देने के लिये आपको भी सलाम।
Post a Comment