आज अचानक कम्पनी गार्डन जाना हुआ . कम्पनी गार्डन मेरठ की ख़ास पहचान है.वहां वाकिंग ट्रेक बनाया जा रहा है जिसका उद्घाटन ढलाई लामा अक्तूबर में करेंगे. वहां की हरियाली ने मुझे बहुत प्रभावित किया . कम्पनी गार्डन पहली बार नहीं गई थी.......कई बार देखा हुआ है....वहां की गीली माटी में नन्हे नन्हे पोधे कुदरत का नूर सा बिखेर रहे थे.आज गीली माटी की खुश्बो और पोधों ने मुझे इन पंक्तिओं की याद दिला दी जो मैंने अरसा पहले लिखीं थीं.
बरसात के बाद आंगन बुहारा
जमी माटी को निकाला
माटी की महक
बड़ी अनोखी थी
फेंकने का मन नहीं हुआ
गीली माटी को मुट्ठी बना
वही मुडेर पर रख दिया
कुछ दिनों बाद देखा
उसमें नन्हा पौधा निकल आया
सोचती रह गई
ये क्या हुआ
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
28 comments:
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
जी बहुत खूब . बधाई.
kin shabdon me kahun......
bahut pyaari rachna , kuch alag se ehsaason ka safar
उसमें नन्हा पौधा निकल आया
सोचती रह गई
ये क्या हुआ
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
" wow, what a thoughts and words, its mind blowing creation"
Regards
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।
‘…हम चुप है किसी की खुशी के लिये
और वो सोचते है के दिल हमारा दुखता नही’’
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
“उसकी आंखो मे बंद रहना अच्छा लगता है
उसकी यादो मे आना जाना अच्छा लगता है
सब कहते है ये ख्वाब है तेरा लेकिन
ख्वाब मे मुझको रहना अच्छा लगता है.”
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
मुझे आप के अमूल्य सुझावों की ज़रूरत पड़ती रहेगी.
...रवि
www.meripatrika.co.cc/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
क्या बात है? अपने आप में एक नया अर्थ समेटे आपकी यह पंक्तियाँ प्यारी लगी। बधाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut khoobsurat.. bahut hi umda.. wakai...
हरा भरा रहे मेरे देश का हर कोना :) बहुत अच्छा लिखा है आपने
vaah ! yah tan aur man dono ki maati hai . tan me hi to man smaaya hai . mnvinder ji !
bahut hi sunder khayal ..kaghz par utar aaya hai aap ki qlam se.
badhaaii !
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
waah...kitna sundar likha hai. amezing...
अरे वाह। माटी की महक की याद दिला दी। मुझे याद है वो जब मै नानी के गाँव में शाम को बैलो को तालाब पर पानी पिलाने ले जाता था तो तालाब के पास वाली गली पर पशुओ का रेला होता था जहाँ थोडी बहुत माटी उडा करती थी उस माटी के महक मेरे दिलो दिमाग पर आज भी छाई हुई है।
ये क्या हुआ
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
बहुत ही खूबसूरत लिखा है।
सुन्दर कोमल रचना, बधाई.
सुंदर व सुकोमल अहसास...
आपको बधाई...
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
ये पक्तियां जब से पढ़ी हैं, हैरान हूँ. गज़ब लिखा है. साक्षात् सरस्वती आपके मन मस्तिस्क पर आकर बैठ गई है. आपकी कई बहुत सुंदर ह्रदय स्पर्शी रचनाएँ इधर पढने को मिली हैं. मेरी ढेर साड़ी दुआएं हैं, ये लेखन यूँ ही जारी रहे. बहुत खूबसूरत विचार है. सृजन यूँ ही होता है. संसार की रचना ऐसे ही हुई है. पता नहीं कहाँ अंकुर छिपा है, जो अचानक प्रस्फुटित होकर हमें आश्चर्य चकित कर देगा. मई यकीन नहीं कर पता की तुम्हारे भीतर एक लाजवाब संवेदनशील कवयित्री दबी पड़ी थी. ये सिलसिला अब रुकना नहीं चाहिए. देश एक और कवयित्री को जल्दी देखेगा..ये मेरी भविष्य वाणी है.
kuch kuch amritaa jaisa ..bahut acchhaa!!!
प्रकृति की सर्जनात्मकता हमें सदा से चौंकाता रहा है, ऐसे क्षणों में हम मनुष्य अपने लगाव और अलगाव से काफी दूर निकल जाते हैं।
सुंदर
खुशी हुई कि ऑपरेशन मजनू वाले कंपनी बाग में कोई रचनात्मक काम हो रहा है। उससे अधिक रचनात्मकता आपकी माटी में है। मन की माटी में।
खुशी हुई कि ऑपरेशन मजनू वाले कंपनी बाग में कोई रचनात्मक काम हो रहा है। उससे अधिक रचनात्मकता आपकी माटी में है। मन की माटी में।
सादर नमस्ते !
कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी टिप्पणी को प्रतीक्षारत है।
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए
बहुत सटीक लेखन बधाई फुर्सत निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पुन: दस्तक दें
बहुत ही सुन्दर कविता, कवि किस रुप मे कोन सी बात कह दे यह वही जानता हे, सच मे ...
माटी ने पी लिया अंबर की रहमत का कतरा
धन्यवाद
चौतरफा नजर । वाह क्या बात है, आभार ।
बहुत अरसा पहले लिखी कोई रचना -किसी प्राक्रतिक द्रश्य देख कर याद आजाना ये कवि का स्वभाव होता है -लेकिन अपने विचारों से रचनाओं से पाठकों को अवगत करना भी आवश्यक होता है -माटी पर लिखी कविता बहुत अच्छी लगी
सोचती रह गई
ये क्या हुआ
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
bahut sundar badhai.
your poems are like paintings converted into words-rajan swami
ये तन की माटी थी
या मन की माटी
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए।
लाजवाब।
आपकी कविता में रूहानी टच है, सीधे दिल में उतर जाने वाला। बधाई।
बहुत सुंदर लिखती हैं मनविंदर आप। इतनी मिठास औक सहजता है इन चंद पंक्तियों में। बधाई। अपनी दूसरी कविताओं से भी परिचित कराती रहें। आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।
ek bar fir aapki umda sonch ka parichaya muje padhane ko mila ,kya bat kahi hai aapnne bahot hi bhavpurn likha hai bahot hi sundar...dhero badhai.....
regards
कविता में ये पंक्तियाँ पढ़कर सोचता रहा कि यह मैंने क्यों नहीं लिखा:
जिसने अंबर की
रहमतों के कतरे पी लिए...
Post a Comment