Saturday, November 29, 2008

क्यों नाकाफी हुई सुरक्षा जेकेट

आज सुबह से ही खबरिया चैनलों पर लता जी का गाया गीत चल रहा है, ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी----- साथ में एटीएस के चीफ को दिखाया जा रहा है जिन्हें उनके साथियों ने हेलमेट पहनाया और सुरक्षा जैकेट पहनायी , उसके बाद वे ताज होटल में प्रवेष करते हैं, उनका सामना वहां आंतकवादियों से हुआ, कुछ ही घंटों बाद वे आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो जाते हैं, बैकग्राउंड में वही गीत, ऐ मेरे वतन की लोगो जरा आंख में भर लो पानी , जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुरबानी

ये उन लोगों के सोचने का भी वक्त है जो रक्षा सौदों में दलाली खाते हैं। अगर रक्षा के लिये खरीदे कवच सचमुच सुरक्षित होते तो क्या आंतकवादियों की गोली एटीएस के चीफ के हेलमेट छेद सकती थी! क्या आतंकवादियों की गोली उनकी सुरक्षा जेकेट को छेद कर उनके सीने पर लग सकती थीं।

मैं नमन करती हूं उन सभी शहीदों को जिन्होंने हमारी सुख शान्ति के लिये अपनी जान की बाजी लगायी है।

18 comments:

Anonymous said...

आप तो पत्रकार हैं, नहीं मालूम?
गोली हेमन्त करकरे की गर्दन पर लगी है, क्यों?
क्योंकि आतंकवादीयों तक मीडिया के लाइव कवरेज के कारण ये जानकारी पहुंच रही थी.
खबर लिखने के साथ साथ पढ़ा भी कीजिये
कल का मुम्बई मिरर पढ़िये

Anonymous said...

और हां, गर्दन को बुलेट प्रूफ जैकेट द्वारा कवर नहीं किया जाता
वैसे तो पुलिसिया तैयारी को भी मीडिया द्वारा कवर नहीं किया जाता

Anonymous said...

JAB MUMBAI JAL RAHAA THAA TAB TO EK POST NAHIN AAYEE AUR AB JACKET KO RO RAHEE HAEN

MANVINDER BHIMBER said...

अज्ञात जी ,
कभी आप सामने भी तो आओ ......कमेन्ट देने का क्या फायदा ऐसे ही

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

agyaat ji se bilkul sahmat nahi, media ne jo dikhaya usse logon ke andar kam se kam ek asha ek utsah ka sanchar to hua, lekin indiatv ne jo aatanki se vaarta dikhayi uski ghor bhartsana. agyaat ji khud batayen, ki mumbai jal rahi thi to wo kahan the, kya aapko nahi maaloom ki is desh me kitne ghotale huye hain,ek prarthna manvinder ji se ->anonymous ka vikalp hata den.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

BAS YAHI AAPAS KI LADAI TO HAMKO KAMJOR BANATI HAI. NARAYAN NARAYAN

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

बहुत अच्‍छे अज्ञात जी क्‍या बात कही है आपने बहादुरी के साथ! लेकिन ये तो बताओ छिपकर वार करने में कौन सी बहादुरी है! अगर आप को मनविंदर जी की सच्‍चाई इतनी बेकार लगी तो रास्‍ता बदल कर निकल जाओ और टिप्‍पणी करनी है तो सीधे तौर पर नाम के साथ करो या फिर अपवाद बनो तो सच्‍चे बनो खुलकर सामने आओ नाकि इस तरह से अज्ञात बनकर। मनविंदर जी आज हमारे देश में भ्रष्‍टाचार ही शिष्‍टाचार बनता जा रहा हे जो हमारे देश को खाई में ढकेल रहा है अरे यहां तो मुर्दे के कफन तक बेच दिए जा रहे हें आप क्‍या उम्‍मीद कर रहे हो यहां पर। अगर मेरी बात किसी को बुरी लगे तो उसके लिए माफी चाहता हूं बाकि ये अज्ञात जी की टिप्‍पणी ने थोडा विचलित कर दिया यही आपस की फूट साफ झलकती है और जिसका तीसरा ही फायदा उठाता है हमेशा।

Rachna Singh said...

किसी भी बहस को इस समय बेमकसद आगे ले जाना केवल अपनी उर्जा नष्ट करना हैं . किसी भी बात को बिना साक्ष रखना ग़लत हैं . अगर आप को लगता हैं की कहीं कुछ ग़लत हुआ हैं तो उस का प्रमाण खोजिये और अपने स्तर पर उसका विरोध कीजिये . कयास लगाने से क्या होगा . जो आम आदमी मरा हैं उसके पास कोई लाइफ जैकेट नहीं थी तो क्या उसकी मौत एक शाहदत नहीं हादसा हैं .

बलबिन्दर said...

अज्ञात साहब, किसी घटना के दौरान पत्रकार अपने काम में जुटे रहते है, हमारे आपके जैसे कमरे में बैठकर उस घटना पर पोस्ट या टिप्पणी नहीं लिखा करते। अगर करते हैं तो इसका मतलब वे अपने नियोक्ता को धोखा दे रहे हैं।

मनविंदर जी, बुरा मत मानिये। मीठे के साथ कड़वा भी झेलना पड़ता है, मीठा लिजिए, कड़वे की तरफ मत देखिए। पहली दो टिप्पणीयाँ ठीक हैं,तीसरी में आप ललखड़ा गयीं,

आपस की लड़ाई उसे कहते हैं जो आमने सामने हो, छुपकर नहीं

ओमकार चौधरी said...

कुछ लोग सिर्फ़ इसी तरह की हरकतों में लगे रहते हैं. इन पर ध्यान न दें. अपने काम में लगी रहें. जो किसी को सम्मान नहीं दे सकते, ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति ही व्यक्त की जा सकती है. जब मुंबई में आपरेशन चल रहा था, तब मीडिया जगत के लोग घरों में सोए हुए नहीं थे. वे भी देशवासियों को सूचनाएं उपलब्ध कराने में जुटे थे.
ब्लॉग की इस दुनिया में कुछ लोग छुपकर इसी तरह की अभद्र टिप्पणी करके अपनी कुंठा जाहिर कर रहे हैं.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

अनाम जी, आप बात को इस तरह ले रहे हैं जैसे आक्षेप आप पर किया गया हो। मनविंनदर जी को जो सही लगा उन्होंने कहा। हम सभी दुखी हैं, अपने जवानों की शहादत पर। हम सबमें आक्रोश है रीढ़विहीन शासनकर्ताओं की ढ़ुलमुल नीतियों पर। इसका मतलब यह तो नहीं कि हम एक दूसरे पर ही कटाक्ष करना शुरु कर दें। आज हर कोई भरा बैठा है। सबसे यही अपेक्षा है कि संयम बरता जाये, अन्यथा कटुता बढते कितनी देर लगती है।

Anonymous said...

अगर मनविन्दर बेनाम कमेन्ट नहीं चाहतीं तो सबसे पहले वे बेनामी कमेन्ट डिसेबल करें. फिर कोई क्यों बेनामी आयेगा? आप वाहवाही के बेनाम कमेन्ट पसन्द करें और आप जो गलतबयानी करें उसको कोई काट न करे क्या यही चाहतीं हैं?

सबसे ऊपर के दोनों बेनामी कमेन्ट मेरे हैं. आप अंग्रेजी का मुम्बई मिरर नहीं पढ़ना चाहती तो इनके समर्थन में नीचे दिये लिंकों को कापी पेस्ट करके समाचार पढ़ लीजिये फिर पता लग जायेगा कि आप गलत हैं या नहीं.

http://hindi.webdunia.com/news/news/national/0811/28/1081128044_1.htm

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3766321.cms

http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=4346&Itemid=43

http://www.bhaskar.com/2008/11/27/0811271901_ats_chief.html

वैसे आपको वाह वाह क्या खूब लिखा, लिखते रहिये कहने वाले तो बहुत मिल जायेंगे, मिल क्या जायेंगे, मिल ही रहे होंगे।
अलविदा, हमेशा के लिये

मुंहफट said...

ये उन लोगों के सोचने का भी वक्त है जो रक्षा सौदों में दलाली खाते हैं...
इस वक्त में हम सब साथ-साथ. सामयिक और जोरदार टिप्पणी के लिए बधाई.

Anonymous said...

मजा आ गया भाई.. वाह! वाह!.. क्या झगडा हुआ है इधर.. इसी को मैं कहता हूँ.. पूर्ण १००% पंचायत.. आइये.. मेरे पंचायतनामा पे घूम लें..

महेंद्र मिश्र.... said...

सामयिक और जोरदार ....

प्रवीण त्रिवेदी said...

सामयिक!!!!!!!!!

संतोष कुमार सिंह said...

आप की राय अपेक्षित हैं,------ दिलों में लावा तो था लेकिन अल्फाज नहीं मिल रहे थे । सीनों मे सदमें तो थे मगर आवाजें जैसे खो गई थी। दिमागों में तेजाब भी उमङा लेकिन खबङों के नक्कारखाने में सूखकर रह गया । कुछ रोशन दिमाग लोग मोमबत्तियों लेकर निकले पर उनकी रोशनी भी शहरों के महंगे इलाकों से आगे कहां जा पाई । मुंबई की घटना के बाद आतंकवाद को लेकर पहली बार देश के अभिजात्य वर्गों की और से इतनी सशंक्त प्रतिक्रियाये सामने आयी हैं।नेताओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं। और अक्सर हाजिर जवाबी भारतीय नेता चुप्पी साधे हुए हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार नेताओं के चरित्र पर इस तरह से सवाल खङे हुए हैं।इस सवाल को लेकर मैंने भी एक अभियाण चलाया हैं। उसकी सफलता आप सबों के सहयोग पर निर्भर हैं।यह सवाल देश के तमाम वर्गो से हैं। खेल की दुनिया में सचिन,सौरभ,कुबंले ,कपिल,और अभिनव बिद्रा जैसे हस्ति पैदा हो रहे हैं । अंतरिक्ष की दुनिया में कल्पना चावला पैदा हो रही हैं,।व्यवसाय के क्षेत्र में मित्तल,अंबानी और टाटा जैसी हस्ती पैदा हुए हैं,आई टी के क्षेत्र में नरायण मुर्ति और प्रेम जी को कौन नही जानता हैं।साहित्य की बात करे तो विक्रम सेठ ,अरुणधति राय्,सलमान रुसदी जैसे विभूति परचम लहराय रहे हैं। कला के क्षेत्र में एम0एफ0हुसैन और संगीत की दुनिया में पंडित रविशंकर को किसी पहचान की जरुरत नही हैं।अर्थशास्त्र की दुनिया में अमर्त सेन ,पेप्सी के चीफ इंदिरा नियू और सी0टी0 बैक के चीफ विक्रम पंडित जैसे लाखो नाम हैं जिन पर भारता मां गर्व करती हैं। लेकिन भारत मां की कोख गांधी,नेहरु,पटेल,शास्त्री और बराक ओमावा जैसी राजनैतिक हस्ति को पैदा करने से क्यों मुख मोङ ली हैं।मेरा सवाल आप सबों से यही हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थति बदली जो भारतीय लोकतंत्र में ऐसे राजनेताओं की जन्म से पहले ही भूर्ण हत्या होने लगी।क्या हम सब राजनीत को जाति, धर्म और मजहब से उपर उठते देखना चाहते हैं।सवाल के साथ साथ आपको जवाब भी मिल गया होगा। दिल पर हाथ रख कर जरा सोचिए की आप जिन नेताओं के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उनका जन्म ही जाति धर्म और मजहब के कोख से हुआ हैं और उसको हमलोगो ने नेता बनाया हैं।ऐसे में इस आक्रोश का कोई मतलव हैं क्या। रगों में दौङने फिरने के हम नही कायल । ,जब आंख ही से न टपके तो फिर लहू क्या हैं। ई0टी0भी0पटना