Friday, March 26, 2010

दो सहेलियां ....एक देह में रहती हैं

दो सहेलियां

एक दूसरे की साथी
दो सहेलियां
एक , एकांत में जागती है
एक ,एकांत में सोती है
सोने वाली जागने वाली से ऑंखें चुराती है
जागने वाली सोने वाली को उलाहना देती है
सोती , सोती क्या है
ऑंखें चुराती है
जागती , जागती क्या है
खुली आँखों से जंगल उगाती है
उन्हीं जंगलों में घूमती है
दो सहेलियां
एक ही देह में रहती हैं
साथ साथ
दुःख कुरेदती हैं

10 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

भाव पूर्ण कविता.....
.
http://laddoospeaks.blogspot.com
आपके पास कैसा दिमाग है ?...जाँचिये एक मिनट में......(लड्डू बोलता है.....इंजीनियर के दिल से.....)

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bhaav se labrez ye bahut sundar kavita hai aapki!

Udan Tashtari said...

एक ही देह में रहती हैं
साथ साथ
दुःख कुरेदती हैं


-बहुत गहरी बात!! अद्भुत!

डॉ. मनोज मिश्र said...

भावपूर्ण रचना,आभार.

वाणी गीत said...

दो सहेलियां एक देह में रहती हैं ...साथ दर्द कुदरती हैं ...
आह ... वाह ...!!

वाणी गीत said...

कुरेदती हैं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत भावपूर्ण रचना..

Sarika Saxena said...

very beautiful, very touching!

شہروز said...

बेहद अर्थवान रचना!!

शीर्षक से ही कविता स्वर पा मुखर हो जाती है.

संजय भास्‍कर said...

बहुत भावपूर्ण रचना.