Thursday, December 10, 2009

ये भी भला कोई वक्त है ......अब आने का

ये भी भला कोई वक्त है
अब आने का
न तारों की छांव
न गुनगुनी धूप की छत
न हवा में मस्तियाँ
न बरसात की मदहोशियाँ
न ही तेरे आने का कोई इन्तजार
...........
अरसा पहले लिखा था इस नज्म को
फोटो गूगल से साभार

20 comments:

इरशाद अली said...

ओह! हो, कहां ले जाकर मारा है, इतनी कसक और और टीस पहुंचाने वाली पंक्तियां...न ही तेरे आने का कोई इन्तजार...कैसे आखिर आप इतने बारिकी से सोच और लिख पाते है, बहुत दिनों बाद लिखा लेकिन...धड़ाम।

पारुल "पुखराज" said...

ठीक बात ...बढ़िया बात ...अब आए तो क्या आए ...

अनिल कान्त said...

वाह क्या खूब लिखीं हैं ये पंक्तियाँ

Amrendra Nath Tripathi said...

''अरथ अमित आखर अति थोरे ''
....................सुन्दर ...

नीरज गोस्वामी said...

आपकी रचना से मुझे अलोक श्रीवास्तव जी का ये शेर याद आ गया:
मैं कैसे मानूं बरसते नैनो के तुमने देखा है पी को आते
न काग बोले न मोर नाचे न कूकी कोयल न चटखी कलियाँ

नीरज

रश्मि प्रभा... said...

एक एहसास

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut he sundar ehsaason ke saath piroya hai aapne...

http://shayarichawla.blogspot.com/

अजय कुमार said...

कोई अचानक ही आ गया

वाणी गीत said...

जो गुंचे बहार में नहीं खिले ...खिजां में उनके खिलने का इंतज़ार कहाँ ...!!

जितेन्द़ भगत said...

सदाबहार सी कवि‍ता।

Hiral said...

बहुत लाजवाब लिखा आपने, शुक्रिया।

Anonymous said...

great mam itne waqt tak kahan sambhal kar rakha tha...

Pratik Maheshwari said...

अंतिम पंक्ति बहुत ही अच्छी..
सुन्दर कृति..

आभार
प्रतीक

Yogesh Verma Swapn said...

bataiye?, bewaqt ki bansuri. bahut badhia likh aapne.

Udan Tashtari said...

न ही तेरे आने का कोई इन्तजार

-बस ये कठिन हो गया बाकी तो...


शानदार रचना...

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत पंक्तियाँ ......... अछा लगा पढ़ कर .........

TRIPURARI said...

सब कुछ तो ठीक है मगर यदि इंतज़ार नहीं है तो कुछ भी नहीं आख़िर में खामोश कर दिया आपने |

TRIPURARI said...

सब कुछ तो ठीक है मगर यदि इंतज़ार नहीं है तो कुछ भी नहीं आख़िर में खामोश कर दिया आपने |

"अर्श" said...

अरसे बाद आपके ब्लॉग पे आना हुआ है , कमाल की नज़्म कही है आपने भले ही पुराने दिनों की बात हो ... नीरज जी ने जो आलोक श्रीवास्तव जी का शे'र कहा है उसी ग़ज़ल से एक और शे'र मैं कहता हूँ ....
ये इश्क़ क्या है ये इश्क़ क्या है ये इश्क़ क्या है ये इश्क़ क्या है
सुलगती साँसे, तरसती ऑंखें,मचलती रूहें,धड़कती छतियाँ...

खुबसूरत नज़्म के लिए दिल से बधाई और आभार...

Unknown said...

didi samay mile to yahan aaiye ,aapkel iiye kooch hai http://katrane.blogspot.com/2009/12/blog-post.html