वो अपनी आदत से बहुत मजबूर है। अनब्याही बातें उसे बहुत परेशान करती हैं। सपनों को काढ़ने वाले धागों के लिए वह हमेशा पक्के रंगों की दुआ करती रहती है। किसी के दुख को पता नहीं कैसे अपने भीतर उतार लेती है। दो अलहड़ प्यार करने वालों को उसने बहुत पास से जाना था। बहुत प्यार, बेहइंतहा प्यार। जब एक संग होने का वक्त आया तो वक्त भी एक तरफ खड़ा हो कर जन्म देने वालों का फैसले को सुनने लगा। काफी देर तक तो वक्त ठहरा रहा, फैसला ठहरा रहा। आग का दरिया पार करने का जुनून था लेकिन आग के दरिया के किनारों पर खड़े हो कर मुहब्बत को उसमें ढूबते और बह जाने को वे दोनों देखते रहे। थक कर अपने अपने रास्तों पर चले गए। सपने काढ़ने वाले धागों के रंग पता नहीं कैसे निकले
ये कोई नई बात नहीं है, ऐसा प्रेम करने वालों के साथ होता आया है। किसी की मुहब्बत ढूब जाए तो जमाना तो चलना बंद नहीं करता है। वो अपनी रफ्तार से चलता रहता है। वो, उनके प्यार की गवाह, पता नहीं कब बारी बारी उनके दिल में उतरती रही, उनकी जगह खुद को रख कर देखने लगी। बहुत बड़ा दर्द का समंद्र उठ रहा था। उसमें गिले शिकवे थे, उन लोगों का जिक्र था जिन्होंने उन्हें रोक लिया आग के दरिया में उतरने से पहले ही। दोनों जात और बिरादरी की लड़ाईयों को देख कर पीछे की ओर मुड़ गऐ। कमजोर कोई नहीं था लेकिन दर्द और भी थे जमाने में। वो तो वहीं ठहर गए लेकिन उनके दिलों का दर्द अब कभी किसी गांव तो कभी किसी ‘ाहर में घूमता रहता है।
और उसे.... अनब्याही बातों के ख्वाब बुनने वाले उल्हड़ प्रेमी पता नहीं कब तक परेशान करेंगे।
16 comments:
YE TO SADIYON SE CHALTA AAYA HAI .... PYAAR MEIN KOI KUCH NAHI DEKHTA .... KOI "AUR BHI GAM MAIN JAMAANE MEIN ..." SOCH KAR APNE PYAAR KA GALA GHONT DETA HAI ..... BAHOOT ACHHAA LIKHA HAI ...
बहुत बढ़िया लेख प्रकाशित किया है।
इसकी चर्चा कल निम्न लिंक पर लगा रहा हूँ-
http://anand.pankajit.com/
"अनब्याही बातों के ख्वाब" - पहले शीर्षक फिर कथ्य ने प्रभावित किया।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
तभी तो कहते है लिखने वाला उन चीजों को खींच कर बाहर लाता है जो भीड़ में रहकर भी अद्रश्य रहती है ..कई दिनों से ऐसा कुछ लिखने की सोच रहा था पर शब्द नहीं मिल रहे थे ...
बहुत दिनो बाद पढ़ा आपको। शीर्षक देख कर लगा कोई कविता है। बहुत बढ़िया और आकर्षक लिखा है।
अनब्याही बातों के ख्वाब
वाह...क्या शब्द प्रयोग है...बहुत अच्छा लिखा है आपने...नए शब्द नए भाव...बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढने का मौका मिला है...
नीरज
ब्लाग लेखन में जिन लोगों ने शब्दचित्र की विधा को अपनाया है, आपका काम उस पंक्ति में कहीं शीर्ष पर आता हैं। ये खुशी की बात है कि मेरठ से दो चितरे आप और डा. अनुराग इस कला में ना सिर्फ पारंगत है बल्कि कहीं आगें निकलते नज़र आ रहे है। मैं बहुत बार ऐसा लिखने की सोचता हूं लेकिन भावनात्मक बयार की फुहार कहां सबके हिस्से। बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा, अच्छा लगा।
ख्वाबो सा शीर्षक है
आकर्षक आलेख
ये जीवन है
इस जीवन का
यही है यही है रंग रूप
थोड़े गम हैं
थोडी खुशियाँ
यही है..यही है
छाँव धूप
निराशा का भावः आता है. जब इस तरह की बातें देखते और सुनते हैं, लेकिन यही सच है और इसे स्वीकारना ही नियति है. बहुत सुन्दर शब्दों में इस पीडा को बयां किया है आपने. बहुत समय बाद ब्लॉग पर कुछ पढने को मिला. लिखती रहें. यही कामना है.
bahut hi badhiyaa, gahre ehsaas
बहुत मुश्किल है पश्चिमी उत्तर प्रदेश व हरियाणा में प्यार का जीना. गांव के गांव व क़स्बे के क़स्बे ठेकेदारों की वपौती हैं. संस्कृति व संस्कार के नाम पर ये आज भी प्रस्तरयुगीन हैं..और तो और चार पैसे की ज़मीन के लिए ही ये अपने किसी की भी सुपारी देने से बाज़ नही आते. अजब चलन है इस इलाक़े का.
anbyahi baaton ke khwab..........kamaal ki soch hai.........shirshak hi itna sarthak hai ki kathanak to hona hi tha badhiya.
is anbyahi baat ke kya kahane dil loot ke rakh liyaa hai aapne...badhaayeeyaan dekhar chhoti baat kar rahaa hun...
arsh
bahut hi sundar lekh hai...
अनव्याही बातों के ख्वाब ये तो शाश्वत ख्वाब हैं जो सदियों बाद भी यूँ ही आते जाते रहेंगे बहुत भावमय रचना हैबधाई
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