Monday, July 27, 2009

........लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम ....

जिन वजहों से ........ पानियों में कभी बहे ........ वो वजहें अब पानियों में बह गई हैं ........ अब ........ उन पानियों के दो किनारे बन ....... पानियों में ...... उन वजहों को टटोलते हैं ....... पर हर बार हाथ खाली ही रहते हैं ....... थक कर खड़े होते हैं ....... पानियों में अपनी अपनी परछाई ........ देख पानी पर चलने की कोशिश करते ....... लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम .......

24 comments:

ओम आर्य said...

paniyo par chalane ko raji nahi hote kadam......atisundar rachana....

vandana gupta said...

khoobsoorat bhav

अनिल कान्त said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने

Ankit said...

नमस्कार मानविंदर जी,
चुनिन्दा लफ्जों में आपने खूबसूरती से अपनी बात कही है.

मोहन वशिष्‍ठ said...

मनविदंर जी काफी दिनों तक ब्‍लागिंग जगत से दूर रहने के बाद अब वापस आया हूं आज आपकी पोस्‍ट लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम पढी बेहद सुंदर और मुझे भी कुछ लिखने को प्रेरित करती सी प्रतीत हो रही है

Razi Shahab said...

हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे है

पानियों पर चलने को राजी नही होते कदम...बहुत खूबसूरत भाव

Drmanojgautammanu said...

गागर में सागर । बहुत सुन्दर शब्द एवं भाव रचना ।

दिगम्बर नासवा said...

पानियों में अपनी अपनी परछाई ........ देख पानी पर चलने की कोशिश करते ....... लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम ......

बहुत लाजवाब लिखा है आपकी रचना बहुत अच्छे भावः लिए हुए है...............

डॉ. मनोज मिश्र said...

शब्द कम भाव/अर्थ ज्यादा ,सुंदर .

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

one of the best from you!!

जितेन्द़ भगत said...

कश्‍मोकश का सही चि‍त्रण।

Vinay said...

बहुत ख़ूबसूरत,
-------------
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा

Udan Tashtari said...

लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम

-क्या बात है!!

नीरज गोस्वामी said...

मनविंदर जी क्या लिखा है आपने...वाह...बधाई..
नीरज

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत .....एक समां सा बाँध दिया जैसे ......

इरशाद अली said...

diatodayउम्र के किसी ना किसी मोड़ पर हर कोई, कभी ना कभी पानियों में बह ही जाता है। अब अगर आज इसकी वजह टटोलेगें तो हाथ खाली ही रहने है, क्योंकि हाथों ने कुछ और थाम लिया होता हैं।.... और पूना का मौसम कैसा है।

रज़िया "राज़" said...

. पानियों में अपनी अपनी परछाई ........ देख पानी पर चलने की कोशिश करते ....... लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम .......
बहोत खूब!!!

Yogesh Verma Swapn said...

लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम

-bahut khoob.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

beautiful.......

maine bhi dhoop ki satah mein faila hua tha....... par meri parchhai hi mujhe nazar nahi aayi thi.......


bahut hi khoobsoorat bhaav ke saath aapne likha hai........badhai.......

36solutions said...

अदभुत शव्‍द शिल्‍प. आभार

Prem said...

rachna achchi lagi badhai .belated happy birthday .

निर्मला कपिला said...

पानियों पर चलने को राजी नही होते कदम...बहुत खूबसूरत भाव
लाजवाब एक नया एहसास बधाई

vijay kumar sappatti said...

manvinder ji , bahut hi khaamosh si nazm , gajab ke bhaav liye hue aur ek eke shabd apni daastan kahte hue...main nishabd hoon .. aapki lekhni ko salaam ...


aabhar

vijay

pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com

Khushdeep Sehgal said...

manvinderji, ब्लॉग की दुनिया में टहलते-टहलते आपसे मुलाक़ात हुई, मेरठ के सारे दिन पिक्चर की तरह सामने आ गए, बेहद अच्छा लगा. आज़ादी के दिन से अपना ब्लॉग शुरू किया है- देशनामा. आशा है अब ब्लॉग के ज़रिये आपसे संवाद बना रहेगा.