Monday, March 16, 2009

हम उलटी दिशाओं के बादल

उस दिन
आसमान साफ था
बादलों में हलचल थी
वो अचानक मिले
जब उन्हें होश आया तो काफी आगे निकल चुके थे
वापस आना संभव न था
उस दिन
बदली ने कहा
मैं हवाअों के वश में हूं
मेरी किसमत में हैं पहाड़ों की चट्टानें
मेरे सामने हैं न खत्म होने वाली राहें
बिछड़ते हुए उदास न होना
कहीं
भटक जाऊं पहाड़ों में
या सुनसान राहों में
और मुझे नसीब हो रेत की एक कब्र
उस कब्र पर अगर पहुंचो
तो उस पर इबारत टांक देना
" हम उल्टी दिशायों के बादल
अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ "

33 comments:

Anonymous said...

sunder likha haen

नीरज गोस्वामी said...

अनुपम रचना...कमाल के भाव और शब्द संयोजन...वाह.
नीरज

इरशाद अली said...

बहुत थोड़े शब्दों से विजूअल्स खीचनें में सब लोग माहिर नही होतें है आप उस कला में पारगंत ही नही बहुत आगे है। अभी तक मैंने हरकिरत हकीर जी, और तानाबाना की विधू जी को इस कमाल से लबरेज पाया है। अच्छा! आज अगर अमृता जी होती तो क्या सोचती? इतनी सारी अमृताए अब हमारे बीच हैं। लोग उनको शब्दों की विरासत की वजह से याद रखते है लेकिन अब हमारे पास नयी खेतीया भी है। वो कही मनविन्दर होती है या कही हरकिरत। आपको पढ़ने के बाद लाजवाब हो जाना एक मामूली बात है।

MANVINDER BHIMBER said...

इरशाद भाई ...अपने इतनी प्यारी बात कह दी है ,,,शुक्रिया ......कोई अमृता की तारीफ़ करता है तो दिल खुश होना लाजमी है .....लेकिन आप तो अमृता से हमारी तुलना कर रहें हैं .......हम कहा or अमृता जी कहाँ ......we तो अपने में najm थी....najm jeeti भी थी .....ये krishama है .....हम तो उनकी panw की dhool भी नहीं है.....बस unhen lafjon से naman करते हैं .....एक बार फिर से शुक्रिया

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण लिखा है आपने ..सुन्दर अभिव्यक्ति

रंजना said...

गहरी बात....सुन्दर भावपूर्ण रचना.

Unknown said...

बिंब अच्छा चित्रित किया । बहुत अच्छा लगा पढ़कर । बधाई( साथ की शब्द चयन भी सुन्दर है)

समय चक्र said...

bahut badiya rachana likhi hai . abhaar.

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

मै जब भी आपके ब्लॉग पर आता हूँ. और रचना पढता हूँ तो हतप्रभ रह जाता हूँ. कमाल के शब्द हैं आपके पास. जब उन्हें गुंथती हैं तो बह विभोर कर देने वाली ऐसी रचना बन जाती है, जो आज से सौ साल पहले भी समाज की हकीकत थी. आज भी है. सौ साल बाद भी रहने वाली है. कभी कभी मुझे लगता है की हम लोग अपने आस पास पड़े कीमती कोहिनूरों को पहचान नहीं पाते. शायद इसलिए कि उसे पहचानने के लिए कुशल जोहरी होना पड़ता है. बहुत खूबसूरत रचना है. हम सब यही तो महसूस करते हैं लेकिन अभिव्यक्त नहीं कर पाते. अहसासों को इतने सुंदर शब्द नहीं दे पाते. यह रचनाधर्मिता यूँ ही जारी रहे. ये ही कामना है.

mehek said...

in khubsurat tippani mein tariff ka ek aur kohinorr jodna chaenge,sach alfazon aur bhav ka jadui sangam hai.

siddheshwar singh said...

* क्षमा चाहते हुए यह कहना चाहूँगा कि हिन्दी ब्लाग पटल पर जो तरह -तरह की अभिव्यक्ति दिखाई दे रही है उसका स्वागत किया जाना चाहिए. मेरी दॄष्टि में यह वैविध्य ही इस माध्यम की विशिष्टता है. मुझे लगता है कि अगर हमारे पास यह माध्यम न आया होता तो शायद दैनंदिन क्रिया व्यापारों के दबावों के बीच अनुभूत को प्रकट करने की राह भी न मिली होती. यह सब मैं आपकी इस कविता ्को पढ़ने के बाद लिख रहा रहूँ . मुझे लगता है जो मनुष्य इतना संवेदनशील है वह रस्मी वाहवाही क ख्वाहिशमंद शायद ही हो. मेरी समझ से अब वह वक्त आ गया है जब हिन्दी ब्लाग -पटल पर आने वाली कविताओं को प्रिन्ट माध्ह्यम पर भी अपनी उपस्थिति दर्शानी चाहिए- चाहे वह पत्र - पत्रिकाओं में हो या संकलनों के जरिए. आप जैसे लोग जो पत्रकारिता की जमीन से जुड़े हैं उनसे पहल की उम्मीद है.प्रिन्ट माध्यम में ब्लाग का सक्रिय काव्य हस्तक्षेप बहुत जरूरी है क्योंकि ब्लाग के कवि और प्रिन्ट के कवि अलग - अलग देखे जा रहे हैं और यह माना जा रहा है ब्लाग पर अधिकांशत: एक्सटेंपोर /तात्कालिक है - गहन , गंभीर और देश-काल से परे जाने वाला एक्सप्रेशन नहीं.

** अब आपकी कविता पर क्या कहूँ ? उसी के बहाने ही तो इतना सब कह जाने को बाध्य हुआ !

***टिप्पणी लंबी हो गई -शायद अपनी बात मैं ठीक से रख पाया अथवा नही ! परंतु मुझे यह लगा कि अपने विचार को शेयर करना चाहिए.

विजय गौड़ said...

अच्छी रचना है। पढवाने के लिए आभार।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत नायाब और भावपुर्ण रचना.

रामराम.

P.N. Subramanian said...

बहुत ही अच्छी कविता. अहसास किया जा सकता है. आभार.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की रचना.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

हम उल्टी दिशायों के बादल
अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ

--बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!!

Yogesh Verma Swapn said...

" हम उल्टी दिशायों के बादल
अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ "

bahut sunder abhivyakti, samajhne wale ko ishara.............

कुश said...

आख़िरी तीन पंक्तियो में तो आपने जीवन का सार ही समेत लिया.. बहुत खूब

डॉ .अनुराग said...

विम्ब का बखूबी इस्तेमाल आज आपकी ये प्रतिभा भी सामने आयी...दिलचस्प अंदाज 1

कंचन सिंह चौहान said...

bahut hi achchhi rachana...! abhibhut karne vaali

admin said...

हम उल्टी दिशायों के बादल
अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाओं के खिलाफ

बहुत खूब कहा है आपने, बधाई।

Puja Upadhyay said...

बहुत खूबसूरत लिखा है...बादल को रेत की कब्र नसीब हो...एक दूर दूर तक फैले रेगिस्तान को भिगोता बादल का एक टुकडा नज़र आ गया...अनूठा है ये बिम्ब.

Hari Joshi said...

इतनी सारी प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद कहने/लिखने को कुछ नहीं बचता। बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ "

थोड़े से शब्दों में गहरी बात कहना तो आपकी हस्ती में शुमार है......
बहूत ही गहरी और शशक्त अभिव्यक्ति है इस रचना मैं

Harish Joshi said...

" हम उल्टी दिशायों के बादल अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ "

wah... nothing to say about it mam...

hem pandey said...

'हम उल्टी दिशायों के बादल अचानक टकरा गये फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ'
-सुंदर.अति सुंदर.

gspabla said...

nice post aunty ji
और बहुत शुक्रिया आपके स्नेह और प्यार के लिए
अब मुझे भी उत्सुकता हो रही है की आपका बेटा और मेरा नाम एक हे है तो क्या हम दोनों में कोई समानता होगी?

--
गुरुप्रीत सिंह पाबला

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) said...

Manvinder Ji!
Hope! the air turblence will subside and once again you will sail through.. looking forward to your next poem!
GurinderJit

हरकीरत ' हीर' said...

भटक जाऊं पहाड़ों में
या सुनसान राहों में
और मुझे नसीब हो रेत की एक कब्र
उस कब्र पर अगर पहुंचो
तो उस पर इबारत टांक देना
" हम उल्टी दिशायों के बादल
अचानक टकरा गये
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाअों के खिलाफ "

वाह.. वाह... मानविंदर जी, बहोत खूब....! सच कहूँ तो तृप्त हो गयी...बहोत अच्छी रचना
सुभानअल्लाह.......!!

manu said...

फिर सारी उम्र लड़ते रहे वो हवाओं के खिलाफ,,,,,,,,,,,,,,,,

बहुत ही शानदार,,,,,

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

ab kya misal doon aapkeqalam ki. bahut hi lajawab hai.

अरविन्द श्रीवास्तव said...

फ़िर सारी उम्र लड़ते रहे हवाओं के खिलाफ़……बधाई स्वीकारें।

gazalkbahane said...

आपकी शब्द बुनकरी मनहर है।
रचना पढने को विवश करती है
मेरी दो गज़ल हर सप्ताह
http://gazalkbahane.blogspot.com/
एवम्‌
दो मुक्त छंद कविता हर सप्ताह
http://katha-kavita.blogspot.com/
पर देख सकते हैं
श्याम सखा‘श्याम’