Thursday, November 6, 2008

पुलिस की इस हरकत को क्या कहेंगे??????

आज का अखबार पढ़ा, एक युवक और युवती को पुलिस ने कार से पकड़ा। युवक को पुलिस ने पीटा और युवती को थाने में ले जा कर उसकी मां को बुला लिया। युवक और युवती की फोटो खींचने के लिये मीडिया को भी बुलाया गया। इसके आगे की कहानी आपको बताने की जरूरत नहीं, युवक को परेशान किया गया, युवती का भी अपमान किया गया. दोनों एक ही समुदाय के थे। पुलिस कहती है, कार पर काले शीशे चढ़े थे, इस लिये कार को पकड़ा, मुझे यह समझ नहीं आया कि अगर कार पर काले शीशे चढ़े थे तो इसके लिये निर्धारित जुर्माना होना चाहिए था, न कि युवक युवती का अपमान। यह भी कि कार कहीं अंधेरे में नहीं खड़ी थी, न ही युवक युवती कुछ गलत कर रहे थे। यह बात दीगर है कि दोनों बच्चों के बारे में उनके अभिभावकों को पता था या नहीं, लेकिन क्या पुलिस को ऐसी हरकत करनी चाहिए?????? क्या युवक युवती अगर दोस्त हैं तो उन्हें अपने घर में बता कर जाना चाहिए????? क्या माता पिता भी ऐसी घटनाओं के जिम्मेवार हैं जिनका अपमान हुआ ?????? बस एक छोटी सी बात बताना चाहती हूँ .....ऐसी ही एक घटना की किरदार ने अपमान से आहात हो कर आत्महत्या कर ली थी ...वो भी पुलिस की करतूत के कारण

29 comments:

Anonymous said...

शर्मनाक है.. कानुन के रखवाले नै्तिकता के ठेकेदार बन युवाओं को परेशान करते है.. चौथ वसुलते है..

ओमप्रकाश अगरवाला said...

मनविंदर जी,
इस हरकत को पुलिसिया हरकत ही कहा जाएगा. ऐसी ही हरकतें करती रहती आज की पुलिस. सवाल यह भी उठाना चाहिए कि क्या पुलिस के पास ऐसा करने का कानूनी अधिकार है? अगर नहीं तो क्या उन पुलिसियों पर कानूनी कार्यवाही हो रही है? क्या किसी नए कानून के तहत पुलिस को समाज सुधार(?) की ड्यूटी भी दी गयी है? सो बात की एक बात, लेन देन कर मामला सुलझा नहीं था क्या?
ओमप्रकाश
MERIKHABAR.BLOGSPOT.COM

travel30 said...

Khatarnaak.. bahut khatarnaak hai.. aur tab to aur bhi jab aap bhukbhogi rah chuke ho :-)


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roushan said...

पुलिस की तमाम कार्वाहियों की तरह निहायत ही ग़लत
हमें समझ में नही आता कि पुलिस में जो समझदार लोग हैं वो क्या करते रहते हैं. क्या प्रतियोगी परीक्षाये पास करके पहुँचने वाले वो होनहार पुलिस का टैग लगते ही बदल जाते हैं?

दिगम्बर नासवा said...

मनविंदर जी
आपने बिल्कुल ठीक कहा
हमारे देश मैं पुलिस बेलगाम होती जा रही है
अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रही इस पुलिस व्यवस्था मैं जाने कब परिवर्तन आएगा
तब तो अँगरेज़ हम पर राज करना चाहते थे इसलिए ऐसे कानून बनाये थे...........
किन्तु अब ..........
अब कोन किस पर राज करना चाहता है

Dikshit Ajay K said...

Mere Vichar Se to galtee un dono ki hai, Jab ye bat sab Jante hain ki Police ko kuchh Le-De kar sab kam ho sakte hain to un ne bhee Police ko 10- 20 ka not tika dena tha.

This is very disgusting for all of us that in this type of cases we can not do any thing except it.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पुलिस नेतिकता के नाम पर हमेशा अनेतिकता का खेल खेलती है . प्रेम हमेशा खलता है और पुलिस के संरक्ष्ण में चकलाघर चलता है

संगीता पुरी said...

शर्मनाक है..

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद शर्मनाक...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aise logon ne hi police ko "Principal Organisation of legislatively incorporated Criminal Elements" me badal diya hai.

ओमकार चौधरी said...

संकट ये है कि पुलिस आज भी 1861 के उस एक्ट के तहत काम करती है, जो भारतीयों के दमन के लिए अंग्रेजों ने बनाया था. बहुत प्रयास हुए कि इस सड-गल गए एक्ट को उठाकर कूडेदान में फैंक दिया जाए लेकिन सरकारों में बैठे ये काले अंग्रेज इसे बदलने ही नहीं देते. पुलिस को जब तक नागरिकों की सेवक नहीं बनाया जाएगा, वह इसी तरह के अमानवीय आचरण करती रहेगी. सरकारें इस कार्यबल का जमकर दुरूपयोग करती हैं. विरोधियों की खुफिया रिपोर्ट्स मंगवाई जाती है, अपनी मांगों को लेकर आन्दोलनरत बेकसूरों पर लाठियाँ चलवाती हैं. किसानों पर गोली चलने का काम भी पुलिस ही करती है. लोकतंत्र में इस तरह के कार्यबल की कोई जरूरत ही नही=इन होनी चाहिए. दंगों, उपद्रवों और देश द्रोहियों से निपटने के लिए अलग फोर्स की जरूरत है. जब तक एक्ट नहीं बदला जाएगा, पुलिस ये सब करती रहेगी. ये किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक है.

कुश said...

शर्मनाक! सिर्फ़ इतना ही कहूँगा

Alpana Verma said...

यह आज की एक घटना नहीं है..आज कल मीडिया और पुलिस दोनों का काम बिना वजह किसी को भी परेशान कर के अपना स्वार्थ सीधा करना है या सिर्फ़ मजे के लिए करते हैं--आत्म संतुष्टि होती होगी?
आप ने लिखा---
क्या पुलिस को ऐसी हरकत करनी चाहिए??????
उत्तर-नहीं कभी नहीं---ऐसा कभी नहीं करना चाहिये--अगर अमेरिका में होते तो ये दोनों मान हानि तोदावा कर सकते थे...ये सरासर बेइज्जती की गयी है.
२-क्या युवक युवती अगर दोस्त हैं तो उन्हें अपने घर में बता कर जाना चाहिए?????
उत्तर--आदर्श रूप में--हाँ--लेकिन वर्तमान में जहाँ एक साथ काम करना होता है वहां कभी भी प्रोग्राम कहीं जाने का खाने पीने का बन सकता है--ये कोई जरुरी नहीं कि जाने से पहले अभिभावकों की अनुमति ली जाए. बाद में भी बताया जा सकता है-
३-क्या माता पिता भी ऐसी घटनाओं के जिम्मेवार हैं जिनका अपमान हुआ ?????
--नहीं ...माता-पिता ही नहीं उनका सारा परिवार और दोस्त-रिश्तेदार सब ही पहचाने जायेंगे और बदनामी बिना-बात की होगी---एक बार नेशनल -इंटरनेशनल न्यूज़ चैनल पर दिख जायेंगे--लोग बात बनायेंगे ही--

सच में बिना जुर्म साबित हुए तो कानून सजा नहीं देता--
मीडिया कवरेज करा कर उन्होंने किसी भी कानूनी सज़ा से बड़ी सज़ा उमर भर के लिए दे दी--

एक तरफ़ हिंदुस्तान चाँद मिशन में सफल हो रहा है--दूसरी और---इस तरह की कुंठित मानसिकता से ऊपर क्यूँ नहीं सोच पाते???यह बड़ा दुर्भाग्य है इस देश के लिए...
ऐसी डेमोक्रेसी का क्या फयदा जहाँ एक इंसान के बेसिक मानवाधिकार भी सुरक्षित न हों..
यू. अ.ई के समाचार पत्रों में भी किसी मुजरिम का नाम तक पूरा नहीं सिर्फ़ intials में दिया जाता है.
लेकिन हमारे देश में सब को छूट है ---क्या कहें...?

Anonymous said...

tatally disgraceful and parents should also give some independence to thoer children and freedom so that they can meet as firends in thier homes . teenagers and youngsters have no place to sit and talk in private . we still are primitive and we shudder at the mere thought of people from opposite sex meeting at home .
not kids but parents in most caes need to grow up .
police is a system and they follow thier rule book blindly and at many times they are asked by parents to enforce { not necessarily in this cae } strictness on teenagers and youngsters . root cause of all this problem is not just with police but in our society we adhere to rules that are too obselete to follow. parental guidence is needed but not parental policing

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

मान लिया कि पुलिस गलत होती है...
लेकिन वे दोनो अंधेरे में जो भी कर रहे थे,उसका समर्थन किसलिये?
प्रेम की पूजा के नाम पर सेक्स को खुला कर देने का पाप क्यों बन्धुओं?
एक ने कहा कि माता-पिता को भी थोङी छूट देनी चाहिये...तो क्या ऐसे काम माता-पिता से कोई पूछकर करेगा?
सामाजिक मर्यादायें रहें कि नहीं?
कौन हो नैतिकता का रखवाला?
अरे, इन्डिया मत बनने दो भारत को!पछताओगे.

डॉ .अनुराग said...

दुखद है बेहद दुखद....क्या कहे जिसकी लाठी उसकी भैंस ......पर एक बात ओर है मीडिया को तो कवरेज नहिकारना चाहिए था ....वो क्यों अपनी बाईट पुलिस के बयानों में ढूंढता है ?

रंजू भाटिया said...

दुखद घटना है यह ..शर्मनाक ..

सचिन श्रीवास्तव said...

हम एक निर्विकार चुप्पी के अलावा सिर्फ गप कर सकते हैं. बागीचे में पुलिसयों ने जो किया था उसे मेरठ भूल गया.

mehek said...

indian police is insane thats what can be said.

सुनील मंथन शर्मा said...

police ko aisa apman karne se baj aana chahiye.

बाल भवन जबलपुर said...

Is baat se sahamat hoon ki saamaajik sarokaar or pulis do vipreet dhuv hai sarkaar ko sochana hee hoga...

PD said...

पोस्ट पढकर सोचा था कि आपके सवालों का जवाब दूंगा, मगर अल्पना जी ने मेरे ही जवाब को अपने शब्दों में ढाल दिया है.. बहुत सही कहा है उन्होंने..

Udan Tashtari said...

बहुत दुखद और शर्मनाक!!

Anonymous said...

mene bi dekha tha ye samachar.aap ko sari galti pulis valon ki kyon lagti hai. achcha hota ki aap puri khbar post karti

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है! यह एक घटना से सारे पुलिस महकमे को कटघरे में नहीं खडा किया जाता। काले शीशे तो प्रतीक है काले कारनामे का।... वहाँ क्यों खडे थे.... हैं ना कुछ अनसुलझे सवाल

Meenu Khare said...

ज्यादातर पुलिस मतलब वर्दी में गुंडे ...

समयचक्र said...

शर्मनाक है,

रवीन्द्र प्रभात said...

आपने बिल्कुल ठीक कहा ,शर्मनाक है जी.../

Bahadur Patel said...

agar aisa hua hai to bahut galat hai.paristhitiyan bahut kharab hai.