Sunday, November 2, 2008

थमा हुआ है नीला आसमान न जाने किसके इंतजार में

ये रात कैसी आयी
खाली हाथ
न कोई ख्वाब
न ख्याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

27 comments:

नीरज गोस्वामी said...

वाह....क्या बात है...खूबसूरत लफ्ज़ और दिलकश एहसास....लाजवाब रचना.
नीरज

Rachna Singh said...

थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

bahut hi badhiiyaa kyaa baat haen manvinder ji

योगेन्द्र मौदगिल said...

न जाने किसके इंतजार में

pata nahi....

बहरहाल अहसासों को उकेरती रचना
आपको बधाई

सुनील मंथन शर्मा said...

थमा हुआ है नीला आसमान
चाँद के इंतजार में

सुशील छौक्कर said...

वाह जी वाह क्या बात है। बहुत खूब ।

अमिताभ मीत said...

पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं

बहुत ख़ूब.

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया है। इंतजार का फ़ल मीठा होता है।

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर और कोमल भाव और बेहतरीन अभिव्यक्ति!! बधाई.

गौतम राजऋषि said...

इतने सुंदर शब्द-संयोजन....वाह
और मेरी तुच्छ गज़ल आपको भायी,इसका धन्यवाद

Smart Indian said...

कम शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति!

Manuj Mehta said...

वाह क्या खूब कहा आपने

रात कैसी आयी
खाली हाथ
न कोई ख्वाब
न ख्याल
पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

बहुत ही उम्दा शब्दों का चयन.
इस खूबसूरत रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.

seema gupta said...

थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में
" behtreen"

Regards

रंजू भाटिया said...

थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

बहुत सुंदर

mehek said...

bahut hi sundar aur dil ko chulenewale bhav sundar

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

मै तुम्हारे कवित्त लेखन के बारे में पहले ही एक ऐलान कर चुका हूँ. तुम्हारे भीतर एक बेहतरीन कवयित्री दबी पडी थी. वह अब जागृत हो चुकी है. इतने खूबसूरत शब्द...क्या कहूं ? अब तो थोड़ी-थोड़ी ईर्ष्या भी होने लगी है कि हम इतने अच्छे शब्द क्यों नहीं लिख पाते. बहुत खूबसूरत रचना है मनविंदर, बधाई

Alpana Verma said...

पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चांद आज गायब है '

bahut khuub!

admin said...

शायद ऐसे ही लम्‍हों को कहते हैं भरपूर नींद, जोकि बहुत कम लोगों को मयस्‍सर हो पाती है।

neera said...

बहूत सुंदर बात बहूत सुंदर अंदाज़ में !

hindustani said...

बहूत सुंदर लिखा है आपने
बधाई स्वीकार करे
मेरे ब्लॉग पर भी पधारे

Unknown said...

kahne hi kya .....aap achha likhte hai....likhte rahe...or hum jaiso ka bhi utsahvardhan karen.........



Jai ho Mangalmay ho...

Satish Saxena said...

अरमानों की खूबसूरत अभिव्यक्ति !

बवाल said...

Bahut Behtareen rachna hai. kya kahna.

हरकीरत ' हीर' said...

मनविन्‍दर जी, सबसे पहले आपको 'थमा हुआ है....' और बादलों से उतरा...' कविताओं के लिए बधाई।
दोनों कविताएं बहुत मर्मस्‍पर्शी हैं,दिल को छू लेने वाली। सच कहूँ तो ऐसी कविताएं पढ़कर एक सकूं सा
महसूस होता है। अपने ब्‍लाग पर आपकी लंबी प्रतिक्रिया देखी। मनविन्‍दर जी औरतों के दर्द प्र।य: एक जैसे
होते हैं। हाँ किसी के नसीब ज्‍यादा और किसी के नसीब में कम हो सकते हैं। शायद यही वजह है कि आपको
ऐसा लगा हम सालों से एक दूसरे को जानते हैं। आपने ठीक लिखा है अमृता होना इतना आसान नहीं है ।
मैं भी सोचती हूँ तो हैरान होती हूँ कैसे सहे होगें उस औरत ने इतने दर्द वो भी उस समय जब औरतों पर इतनी
अधिक पाबंदियाँ थी...? मेरा तो नमन है उन्‍हें।
मैं फुर्सत में बात करुँगी आपसे। वैसे मेरा न. ले लें-
९८६४१७१३०० । आज यहाँ बम ब्‍लास्‍ट में मारे गए लोगों पर श्रद्ध।जंलि स्‍वरुप कविता पाठ का आयोजन
है लौटकर बात करती हूँ।

shama said...

Aapki tippaneeke liye savpratham tahe dilse shukriya ! Jab bhi aapke blogpe aatee hun, aapse baat karneka man hota hai,,,sochtee hun, ek sahelee ho, jiske aage dil khol sakteen hun ! Pata nahee aapko ye manzoor hoga ya nahee??Mai koyi lekhika ya kavi nahi...jab blogpe likhtee hun to jaisa, jaisa manme aata hai, likhtee chalee jatee hun...isme koyi editting nahee hota, nahee koyi poorvarvabhyas...Ek aur bat kahun? Maine "Amrita Imroz" padke bas kalhi khatm kee. Aur lagta hai, mujhme Amrita aur Imroz dono eksaath maujood hain!!Amritaki jo panktiyan, Imrozne lampshade pe likheen, wahee sabse pehle maine padhee theen...aur Amritaaka naam aatehi, wahee mere zehenme aatee hai ! Kayi sawal jo mujhse poochhe gaye, unke jawab hubhoo waise the jaise ki Imrozne diye..!Ya kuchh baten Amritane kaheen, jaise maine kahee hon...bina ye kitab padhe!!!Ye kaise sambhav hai ? Jabki mai un dono hastiyonki paironki dhoolika ek kan bhee nahee !
Ab aapki is rachnake bareme mujh jaisi adna-si wykti likh hee kya sakti hai??Mere paas saheeme alfaaz nahee hain...!Aap seedhe, binaa kisee dastak ke dilme pravesh kar letee hain...!
Mai apna cell no chhod rahee hun:
0/9860336983
Waise to aapse baat karneke khwahishmand hazaron hote honge...par agar unme meree ginatee ho gayi, to apne aapko khushqismat samajh loongee!

Anonymous said...

"थमा हुआ है नीला आसमान न जाने किसके इंतजार में"
it would be a wonderful experience to read all your poems . so think to create a kavya sangriha.-rajan swami

vijay kumar sappatti said...

aaj ,pahli baar aapke blog par pahuncha.
pad kar bada sakun mila .
nazmon mein kahaniya hai ..
dil ki baaton ki jubaniya hai ...

ab regular visit karung a aur padunga .

agar fursat mile to mera bhi ek blog hai ,kabhi nazar daal dijiyenga .
mujhe poori umeed hai ki aapko meri nazmein pasand aayengi .

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

प्रदीप मानोरिया said...

थमा हुआ है नीला आसमान
न जाने किसके इंतजार में

laazabaab bahut sundar