Wednesday, October 29, 2008

बादलों से उतरा एक नूर सा जोगी

बात सालों की है
दहलीज पर एक
जोगी आया
उसने मांगे कुछ अक्षर
पहले मैं सोच में पड़ गई
फिर
रब को याद किया और
मैंने दे दिये उसे अक्षर
उसने अक्षरोंकी माला गूंथी
आंखों से चूमी
और मेरी ओर बढ़ा दी
मुझे वो जोगी नहीं
बादलों से उतरा एक नूर सा लगा
मंत्रा के नूर से उजली हुई
वो माला मेरे सामने थी
मैं अडोल सी खड़ी रह गई
और सोचने लगी
कैसे लूं माला को
माला को झोली में लेने से पहले ही
मेरे पांव चल चुके कई काल
काल के चेहरे थे
कुछ अजीब
किसी के हाथ में पत्थर थे
तो किसी के हाथ में फूल
फिर अचानक
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में

23 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।

समय चक्र said...

कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में

Umda prastuti ke liye abhaar.

Anonymous said...

बधाई। दीपावली शुभ हो। कायनात में आपकी रचनाएं हमेशा रौशनी बिखेरती रहें।

शायदा said...

बहुत रूहानी सी रचना।

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

बहुत खूबसूरत. क्या कहूं इस रचना पर ? बहुत मन से रचा है आपने.

मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था

सुशील छौक्कर said...

बहुत ही उम्दा लिखा है आपने।
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म

Udan Tashtari said...

अद्भुत रचना!!बहुत जबरदस्त!!

आनन्द आ गया.

roushan said...

बहुत सुंदर
शब्दों का बढ़ना संदेश का आगे बढ़ना होता है सोच का आगे बढ़ना होता है

Anonymous said...

sundar abhivyakti!

जितेन्द़ भगत said...

सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति‍-
अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को
देखता हैं मुसकुराता है
कहता है यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में

Vinay said...

बहुत ख़ूब!

राज भाटिय़ा said...

आप को दिपावली की शुभकामान्ये,सुन्दर कविता लिखी है आप ने.
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

एक अच्छी रचना पढ़कर एक बारगी दिल अवाक रह जाता है...कुछ बोल ही नहीं पाता...क्या लिखूं.....समझ ही नहीं आ रहा ...!!

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी और साफ सुथरी कविता के लिए आपको बधाई

abhivyakti said...

sach apne aksharon ko sanjoya aur bahut hi sunder dhang se sajaya hai.
-dr. jaya

जगदीश त्रिपाठी said...

बेहतरीन रचना। अध्यात्म से सराबोर। बधाई।

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत अन्तरंग आध्यात्मिक बह्व्नाओं को सजोंये सुंदर शब् रचना से आप्लावित . बधाई आपको बहुत दिन के बाद पढ़ पाया क्षमा प्रार्थी हूँ

वर्षा said...

अच्छी कल्पना, अच्छी रचना।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

रचना के सबब को समझाती
सुंदर रचना के लिए बधाई.
=====================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

admin said...

यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में।

बहुत खूबसूरत ख्याल है। इतनी सुन्दर कविता के लिए बधाई।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत खूबसूरत रचना

Pradeep Kumar said...

wah ! bhagwan kare wo jogi aapko zindagi bhar likhne ki prerna deta rahe. bahut khoob

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

kavita ke roop me apni awaj aage badane ko kya khoob likha hai aapne..........
bahut hi sundar likha hai.............