बात सालों की है
दहलीज पर एक
जोगी आया
उसने मांगे कुछ अक्षर
पहले मैं सोच में पड़ गई
फिर
रब को याद किया और
मैंने दे दिये उसे अक्षर
उसने अक्षरोंकी माला गूंथी
आंखों से चूमी
और मेरी ओर बढ़ा दी
मुझे वो जोगी नहीं
बादलों से उतरा एक नूर सा लगा
मंत्रा के नूर से उजली हुई
वो माला मेरे सामने थी
मैं अडोल सी खड़ी रह गई
और सोचने लगी
कैसे लूं माला को
माला को झोली में लेने से पहले ही
मेरे पांव चल चुके कई काल
काल के चेहरे थे
कुछ अजीब
किसी के हाथ में पत्थर थे
तो किसी के हाथ में फूल
फिर अचानक
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
23 comments:
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
Umda prastuti ke liye abhaar.
बधाई। दीपावली शुभ हो। कायनात में आपकी रचनाएं हमेशा रौशनी बिखेरती रहें।
बहुत रूहानी सी रचना।
बहुत खूबसूरत. क्या कहूं इस रचना पर ? बहुत मन से रचा है आपने.
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को देखता हैं
मुसकुराता है
कहता है
यही तो मैं चाहता था
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने।
मैंने वो माला झोली में ली
और सीने से लगा ली
उपर से पल्ला कर लिया
पल्ले के अंदर बन गया इक संसार
अब कभी कभी पल्ला हटा कर
माला के अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
अद्भुत रचना!!बहुत जबरदस्त!!
आनन्द आ गया.
बहुत सुंदर
शब्दों का बढ़ना संदेश का आगे बढ़ना होता है सोच का आगे बढ़ना होता है
sundar abhivyakti!
सुंदर अभिव्यक्ति-
अक्षरों को कागज पर रखती हूं
कभी उनकी कविता बनती है
तो कभी नज्म
जोगी का फेरा जब लगता है
कागज पर रखे अक्षरों को
देखता हैं मुसकुराता है
कहता है यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में
बहुत ख़ूब!
आप को दिपावली की शुभकामान्ये,सुन्दर कविता लिखी है आप ने.
धन्यवाद
एक अच्छी रचना पढ़कर एक बारगी दिल अवाक रह जाता है...कुछ बोल ही नहीं पाता...क्या लिखूं.....समझ ही नहीं आ रहा ...!!
अच्छी और साफ सुथरी कविता के लिए आपको बधाई
sach apne aksharon ko sanjoya aur bahut hi sunder dhang se sajaya hai.
-dr. jaya
बेहतरीन रचना। अध्यात्म से सराबोर। बधाई।
बहुत अन्तरंग आध्यात्मिक बह्व्नाओं को सजोंये सुंदर शब् रचना से आप्लावित . बधाई आपको बहुत दिन के बाद पढ़ पाया क्षमा प्रार्थी हूँ
अच्छी कल्पना, अच्छी रचना।
रचना के सबब को समझाती
सुंदर रचना के लिए बधाई.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
यही तो मैं चाहता था
इनकी कविता बने
नज्म बने
और बिखर जाएं सारी कायनात में।
बहुत खूबसूरत ख्याल है। इतनी सुन्दर कविता के लिए बधाई।
बहुत खूबसूरत रचना
wah ! bhagwan kare wo jogi aapko zindagi bhar likhne ki prerna deta rahe. bahut khoob
kavita ke roop me apni awaj aage badane ko kya khoob likha hai aapne..........
bahut hi sundar likha hai.............
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