अरसे बाद दराज खोला
कुछ धूल खाती चीजें मिली
टटोला तो कुछ मुड़े कागज भी मिले
जिन पर पहले कुछ लिखा
फिर लकीरें फेरी थीं
आंखों में वो अक्षर तैर आये
जिन पर लकीरें फेरी गई थी
वो अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
जहर को पीना चाहते थे
उन्होंने
आग को चूमा
जहर को पिया
फिर
दराज में कहीं दब कर रह गये
धूल खाने के लिये
वक्त के साथ
अक्षर गहरे हुए या फीके पड़ गये
ये वक्त जाने
22 comments:
उन्होंने
आग को चूमा
जहर को पिया
फिर
दराज में कहीं दब कर रह गये
धूल खाने के लिये
वक्त के साथ
अक्षर गहरे हुए या फीके पड़ गये
ये वक्त जाने।
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं। इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई।
वो अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
जहर को पीना चाहते थे
उन्होंने
आग को चूमा
जहर को पिया
"what a wonderful word selection'
regards
सुन्दर पंक्तियाँ ! चलिए जो बीत गयी वह बात गयी !
it's very nice poem of you.
खूबसूरत पंक्तियाँ.बधाई
वक़्त ही जानता है हमेशा पूरा सच, वही बताता भी है...
Your composition left me speechless. How words render the inner feelings is clearely demonstrated by you. Beautiful lines with much beautiful thoughts. Thanks for the composition.
वाह जी क्या बात है आनंद आ गया लगा कि किसी ने मोती की माला बनाने के लिए मोती कहां कहां से ढूंढे बहुत अच्छी कविता है आपकी मन मोह लिया
वो अक्षर
खास अक्षर थे
आग को चूमना चाहते थे
जहर को पीना चाहते थे
बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर! दराज और टटोलिये!!
बहुत खूब, अच्छा लिखा आपने
chote subject pe badi sonch wah kya bat likhi hai aapne .... gajab ki thinking dekhane aur padhane ko mila aapke blog me ,main yahan pahali dafa aaya hun umda rachanayen padhane ko mili hai aapka dhero badhai...
regards
वाह... वाह...
सुंदरतम...
बधाई..
very thoughtful poem
क्या बात हे, अति सुन्दर.
धन्यवाद
सुंदर ! आपको पधारने का आमंत्रण है हिन्दी का चिंतन पढने को मेने आपको मेरे ब्लॉग पर शामिल कर लिया है आप भी मुझे शामिल कर ले
bahut achcha likhti hain aap...
kya kahne
aapne bahut accha likha hai.
padh kar bahut accha laga.
agar samay mile to hamare blog par bhi daskat de.aapki salah hamare liye bahut sahayak hongi.
अरसे बाद दराज खोला....अपने आप से जैसे कविता बातें कर रही हो....बधाई
उन्होंने
आग को चूमा
जहर को पिया
फिर
दराज में कहीं दब कर रह गये
धूल खाने के लिये
वक्त के साथ
अक्षर गहरे हुए या फीके पड़ गये
ये वक्त जाने।
Beautiful poem.
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