Saturday, March 22, 2008

उस जीने के ऊपर

कबाड़ी बाजार में मुझे पहुँचना था १२ बजे लेकिन में जरा जल्दी आ गई , बाजार का नजारा अलग था, जो वहाँ से गुजरता, उसकी नजरों में हवस तैरती सी दिख रही थी, ऊपर छज्जों पर जो खड़ी थी, उनके भी इशारे हवस को बढावा दे रहे थे, इससे पहले कि मेरा दिमाग कुछ और सोचता , अतुल शर्मा आ गई और बोली, ऊपर चल कर देखना, उसके साथ कुछ और महिलाये भी थी, हम एक जीने के सामने आ गए, कुछ शीशोरे किस्म के लोग हमें घूरने लगे, जीना काफी संकरा था, एक साथ दो लोग चढ़ भी नहीं सकते थे, सो एक एक कर हम ऊपर पहुँचीं, जीना एक छोटे से आँगन में जा कर खत्म हुआ। वहीं आगे एक कमरा था, सजिंदो के सामने हारमोनियम और तबला रखा हुआ था। कमरे की बाहर की तरफ़ छज्जे पर सजी संवरी लड़कियां हमे देख कर सहम गईं। कृष्णा अम्मा ने इशारा किया तो वे भीतर आ गईं। अतुल वहाँ होली खेलने के लिए अपनी टीम के साथ आई थी और मैं कवरेज के लिए। साजिंदों ने साज छेड़ दिया और नेना ने सुर तमन्ना फ़िर मचल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ, उसके बाद..... जिस पथ पे चला उस पथ पे मुझे साथ तो आने दे साथी न समझ कोई बात नहीं मुझे साथ तो आने दे, कृष्णा की नजर लड़कियों पर थी कि वे किसी से बात न करे, फ़िर भी मेने जीनत से पूछा , बाहर की दुनिया देखने का जी नहीं करता है? जीनत ने बिना देर लगाए कहा, देख कर ही तो जहाँ आई हूँ। बाहर की दुनिया ने ही इस जीने की सीडियाँ दिखाई हैं, आपका शुक्रिया , आप लोग जहाँ आए और इस जीने के पार का दर्द जानने की हिम्मत की, मैडम इस जीने से उतरने के बाद रास्ते तो बहुत हैं लेकिन उसकी मंजिल कोई नहीं ,

4 comments:

सचिन said...
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सचिन said...

helo madam, kabadi bazar ki story achhi hai. kisi din mauka mila to mai bhi likhunga. gud apka blog badh raha hai.

रंजू भाटिया said...

मैडम इस जीने से उतरने के बाद रास्ते तो बहुत हैं लेकिन उसकी मंजिल कोई नहीं ,
जो दर्द इन पंक्तियों में है वह रूह तक महसूस किया जा सकता है ......यह वह विषय जिस पर लिखते वक्त कलम भी रो पड़ती है ..

MANVINDER BHIMBER said...

Ranju ji,
comment de leye shukriya. Mera hosla badati rahain esey hi.