Sunday, February 20, 2011

छू कर भी छू न सकी .......

वो डायरी ..... जिसमें तेरे प्यार की खुशबू .... से लिपटे ... कुछ अक्षर .... छिपा के रखे थे कभी .... आज फिर मेरे हाथ लगी .... पन्ना पल्टा ..... तेरा इश्क बैठा था हर अक्षर की ओट में ..... डायरी तो हाथ में थी लेकिन ..... अक्षर बहुत ऊँचे स्थान पर खड़े थे ..... छू कर भी छू न सकी ..... अपनी ही डायरी के अक्षरों को ..... बेदम हाथों से डायरी ..... फिर वहीँ रख दी..... जहाँ से मिली थी .....

12 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

manvinder ji..
bahut hee dil ko chhoo lene wali baat keh di aaapne..!!

Amit Chandra said...

बहुत ही भावपुर्ण प्रस्तुति है। आभार।

Satish Saxena said...

कमाल की अभिव्यक्ति ...बहुत समय तक सोंचने को मजबूर करते रहे ये अक्षर !
शुभकामनायें आपको !!

mansi said...

Speechless Creation.
Mam, I m really proud to work with you. I will try to learn a lot from you..

Amit 'Anand' said...

बहुत सुंदर, शब्द संयोजन बेहतरीन.... अमित कुश

वाणी गीत said...

अक्षर इतने ऊँचे जा बैठे अपनी ही डायरी के ...
बहुत सुन्दर !

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाकई बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति है, आभार।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... गहरे तक गूंजते रहे आपके ये शब्द ..... कमाल का लिखा है ...

मेरे भाव said...

वक़्त ने इतनी दूरियां बढ़ा दी कि............ भावमयी प्रस्तुति .

vijaymaudgill said...

manvinder ji apki rachna ik chubhan c de gayi. kahin gahre tak utar gayi. sach main.......
subhaan allah

kavita verma said...

bahut sunder vakt ki doori se bahut unche hote shabd....

मीनाक्षी said...

बेहद खूबसूरत अन्दाज़ में भावों की अभिव्यक्ति मन को मोह गई...