उस रात .....................
वो अकेली नहीं ...........................
उस के साथ रात भी जली थी .......................
मैंने उसे आग अर्पित की ..........................
वो और भी सर्द हुई ................................
समन्दर की बात की .............................
तो वो और भी खुश्क हुई ................................
उस की प्यास न पानी बनी ................................
ना आग .....................................
उसके दोष अँधेरे नहीं .................................
रौशनी थे ..............................
उसकी भटकन केवल रिद्हम थी ............................
जब साज निशब्द हुए ..................................
तो वो मीरा बनी ...................................
राबिया हुई ...................................
आखिर .........................................
मंदिर का प्रसाद हुई .........................................
मस्जिद की दुआ हुई ...................................................
9 comments:
खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी ।
वाह!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
आप नज्मे रेगुलर क्यों नहीं लिखती ????
one of the best from u...
बहुत खूबसूरत.
आग से सर्द और समन्दर से खुश्क का अहसास करना
वाह
यकीनन भीगा मन ही इस अहसास को जी सकता है
खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी ।
kisi k saath
raat ka jalna....
bahut hi cute symbol.....
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