Thursday, February 18, 2010
पत्र का शीर्षक क्या होगा ?
तुम्हारी किताब छपी ......तुम अरसे तक मुझे खोजती रहीं ......किताब देने के लिए। और फिर किताब दी भी। तेरी मेरी पहचान बस इतनी ही थी। छोटी सी। मै अपनी किताब की समीक्षा और टिप्पणी के लिए किसी महिला आलोचक / साहित्यकार चाहता था । मेरे दोस्त ने तुम्हारा जिक्र किया। तुमने किताब का प्रूफ पड़ कर टेलीफोन पर ही चार पंक्तियाँ लिख दी। मैंने वो चार पंक्तियाँ श्रृंगार समझ कर किताब में सजा ली। बस ऐसी ही थी हमारी जान पहचान।
मेरी क्या ओकात ....मुझे कोई कम ही अपनी किताब देता है । तेरी किताब हाथ आते ही पड़नी शुरू कर दी । जैसे जैसे पड़ता गया....एक जख्मी रूह सामने साफ होती गई जिसके हाथ में शब्द और अहसास की तलवार पकड़ी हुई थी । रूह के सामने मैदाने जंग था और पीछे छोड़ आई थी एक संसार ।
शायद ऐसे ही पलों ने उसे शायरा बना दिया था और खुले आसमान में उड़ने शक्ति थमा दी थी । बेटियां चाहे हमेशा ही अपने दुःख दर्द माँ के साथ सांझे करें लेकिन कभी कभी दुखों की लकीर बाप रूपी दोस्त को भी चुभ जाती है दुखों की इस लकीर ने ही तुम्हारी नज्मों को चार चाँद लगाये हैं ।
मुझे पता नही ...मैं तुझे क्या आशीर्वाद दूँ...अतीत के पल सपने बन जाएं ......भविष्य चमक जाए ....अपने मोह में गूँथ कर मै यही आशीर्वाद देता हूँ .....तुम इसे जैसा चाहो ......इस्तेमाल कर लो
एक पत्र की बात
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
khubsurat ehsaasaat bharaa ptra ... hmmmm
arsh
बहुत ही मार्मिक पत्र ....
this is very nice...
हम्म....!!
बहुत मार्मिक लगा ये पत्र, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर पोस्ट.
सुंदर व भावातिरेक से परिपूर्ण.
Post a Comment