Wednesday, June 24, 2009
उधड़े हालात सिलती ... ........वो लड़की
वो लड़की ........
जो हर वक्त अपने घर के कच्चे आंगन में बैठी बड़े ध्यान से उधड़े हुए हालात सीती रहती है। इस कदर ध्यान से सीने काम करती है कि लगता है , धागा खुद ब खुद कपड़े पर उगता चला जा रहा है। दिल कहता है......
दुआ भी एक धागा है जिससे बंदे का रब से सिला जुड़ा रहता है। दुआ के कई रंग हैं , धागों की तरह । जो धागे सिर्फ ख्चाहिशों की मांग के रंग से रंगे रहते हैं , उन धागों से काढ़ी गई दुआ के रंग अलग से होते हैं लेकिन जिन रंगों पर रब की मोहब्बत का रंग चढ़ा होता है , उनसे काढ़ी गई दुआ की खुशबू आती है। दुआ की छांव में बैठ कर कुछ मांगना जरूरी नहीं है, इस छाव में छिपे हुए खूबसूरत सफर की आहट सुनना भी खास है। वो लड़की, बहुत कुछ सिखाती है।
वो लड़की , रब सरीखी मोहब्बत की बेल काढ़ रही है। मोहब्बत की गलियों की धूल बुहार रही है
उस लड़की को यकीन हैं.....
कभी तो वो आयेगा......
यहां कदम रखेगा......
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34 comments:
likhne ka andaaz MASHAALLAH bhut pyaara hai
कितना प्यारा लिखती हैं आप , मैं तो कहूंगी कितना अद्भुत सोचती हैं आप |
बिना सोचे कोई लिख ही नहीं सकता |
वो रूहानी इश्क से सराबोर कर दिया |
marmsparshi.....
जिन रंगों पर रब की मोहब्बत का रंग चढ़ा होता है , उनसे काढ़ी गई दुआ की खुशबू आती है।
क्या जुमला है....वाह मनविंदर जी वाह....कमाल कर दिया आपने...
नीरज
उन धागों से काढ़ी गई दुआ के रंग अलग से होते हैं लेकिन जिन रंगों पर रब की मोहब्बत का रंग चढ़ा होता है , उनसे काढ़ी गई दुआ की खुशबू आती है
bahut hi bariki se aap ishq ke rang se pure maanas par bikhaer deti hai .......jisaki khushboo khud ba khud aane lagati hai.......bahut sundar rachana
दुआ की छांव में बैठ कर कुछ मांगना जरूरी नहीं है, इस छाव में छिपे हुए खूबसूरत सफर की आहट सुनना भी खास है।
बहुत सुंदर भावः बेहतरीन रचना मेरी बधाई स्वीकार करो
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
gazab !
bahut sunder aalekh.
हाँ इसे कहते हैं कल्पनाशक्ति और शब्द की ताकत..पहली बार ही पढ़ कर बहुत कुछ समझ गया...आगे पढता रहूंगा..
क्या कहें ? सब कुछ कह दिया आपने.
इसमें दर्शन भी है, समर्पण भी, दुआ भी,
रब भी. जीवन भी. आस भी. कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है. बधाई
पूरे एक महीने बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला है ....पढ़कर अपनी माँ के शब्द याद आ गये ...उनका कहना है कि काम करते करते रब को याद करो , उसी मे ही उसको देखो, वो दिखाई देगा , ......उसे देखने दे लिए किसी ख़ास स्थान पर जाने की आवश्यकता नहीं .....
कहने का अंदाज़ पसंद आया
वाह मीठे मीठे शब्द। वाकई शब्दों में जादू सा है। आप कम लिखती है पर बेहतरीन लिखती है।
जिन रंगों पर रब की मोहब्बत का रंग चढ़ा होता है , उनसे काढ़ी गई दुआ की खुशबू आती है।
सच में ये पंक्ति इतनी सशक्त तरीके से अपने आपको प्रस्तुत कर रही है के कुछ कहते नहीं बन रहा है ... मानवीय सोच की तरह से उड़ सकता है और गंभीर विषय की तरफ सबको मुखातिब कर सकता है ये पढ़ के बस दिल वाह कह उठा ....
बहोत बहोत बधाई
अर्श
manvindar jee apaki ye rachanaa bahut kuchh sochane par majboor kar rahi hai han jab vo ladki hai to use to udhade haalaat seene ki training dahej me hi mil jaatee hai iske ilaavaa vo kar bhi kya sakati hai bahut sundar aabhaar
आपने ऐसा कहा की दिल को छू गयी आपकी रचना......
मोहब्बत की गलियों की धूल बुहार रही है उस लड़की को यकीन हैं..... कभी तो वो आयेगा...... यहां कदम रखेगा......
rachna ka har shabd jaise kadha gaya ho rab ki mohabbat mein dua ke roop mein..........ek alag hi andaaz hai .......jadoo ban chaa gaya.
rachna kya hai ek haseen dil ko chhooti kavita hai, bahut sunder likha hai. badhai sweekaren.
भाव बहते दिल में उतर गये..आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ. बहुत खूब!!
muhabbat se kiya hua har kaam sakoon deta hai.sundar soch pyari soch. badhai.
इसे कह्ते हैं शब्दों का जादू।एक एक शब्द बता रहा है दुआ की और आपकी कल्पनाशक्ती की ताक़त्।
बहुत भावपूर्ण लिखा है।बहुत सुन्दर!!
कभी कभी दुआए किसी बूढे शख्स की शक्ल ले लेती है .कभी वक़्त की.......कभी बादल की ओर ...ओर कभी लफ्ज़ की..कभी बस एक नजर की.....
अमृता का असर......
उस लड़की के ख़ाब ज़रूर पूरे होंगे!
उस लड़की को यकीन हैं..... कभी तो वो आयेगा...... यहां कदम रखेगा......
shyde kabhi to aayega. shayde kabhi ne aaye. shyde aa jaye. uneed ka daman kabhi nahin chodna chahye.
लगा अमृता जी कुछ कह रही है ..बढ़िया लिखा है आपने
आए या न आए, पर यकीन तो जिंदा रहना ही चाहिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुन्दर तरीके से आपने उधडे कपडों के रूपक पर जिन्दगी के हालत को बयान किया है .. आपकी लेखनी को प्रणाम
मनविंदर जी ,
बेहतरीन अल्फाज़ .....और लाजवाब लेखनी .....!!
इस काव्य का रूप भी दे सकतीं थी .....!!
बहुत ही सुंदर -क्या कहने .
आपके लिखे में जिस तहजीब और सलीके का मिश्रण है वो किसी नकलीपन से बहुत दूर है, बड़ी लाजवाब बात है कि आप सिर्फ लिखने के लिखने के लिये नही लिख रही। ये कौन है, आपकी रचनाओं में जो हमेशा अपनी झलक तो दिखाता है, लेकिन दीदार को तरसाता है। मुझे लगता है, कुछ अधुरे किस्सें अभी अपने अंजाम को बाकी हैं।
दिल छू लिया !
मैं आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया..बहुत अच्छा लगा!!!!!! प्रियतम के इंतजार में बैठी लड़की का धैर्य...वाह बहुत खूब...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है...........
aap bahut achchha likhti hain
अरे मनविंदर जी....!........मुझे इस वक्त अगर कोई अफ़सोस है तो बस यही कि मैंने आपको इतना देर से क्यूं
पढ़ा...फिर यह भी लगता है कि चलो जब जागे तभी सवेरा...पर एक बात और याद आ रही है कि बिना किस्मत कभी कुछ नहीं होता.....कुल मिलकर इतना तो तय है कि वो सुबह कभी तो आयेगी....जब लोग अपने काम काज में मगन हो कर भी भक्ति करना सीख जायेंगे...
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