मेरे शहर में एक प्यारी सी लड़की थी ......डी फार्मा की छात्रा , जिसने प्यार में धोखा मिलने पर अपनी जान गंवा दी। अपने प्रेमी के लिए उसका आखिरी नोट कुछ इस तरह से था............''मैं तुम्हें प्यार की तरह से प्यार नहीं करती , मैं तुम्हें देवता समझती थी। तुमने शादी करके दिखा दिया कि प्यार हमेशा बराबर वालों के साथ किया जाता है। हम ही गलत थे। एक बार यह तो देख लेते, तुम हमारे दिल में किस जगह रहते थे।''
.......... पता नहीं उम्र कच्ची थी या प्यार का रंग लेकिन प्यार रूसवा हो गया।
अरसा पहले एक नज्म यूं ही लिखी थी, नहीं जानती आज क्यों फिर वह नज्म जेहन में हावी हो रही है।
एक ख्याल
उगते सूरज सा ख्याल
पहली बार ख्याल से सामना हुआ
उस पेड़ के नीचे
जिस पर अभी अभी बौर आया था
ख्याल बौर से खेलने लगा
वो तपती दोपहरी थी
ख्याल के साथ आन खड़ा हुआ एक साया
हवा चली
बौर के कुछ अंश साये पर बिखरे
साये में कंपन हुआ
कायनात महक उठी
डाल पर बैठा परिंदा देख रहा था
कंपन
कायनात का महकना
और दूर से आता तूफान (अगला अंश फिर कभी ..................)
29 comments:
बहुत खूब...मार्मिक रचना...
नीरज
सुंदर रचना .
अभी कि तो घटना है ये, उस लड़की का वो आखिरी खत अखबार में शाया भी हुआ। इस बात का मलाल करने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन आपने इस बात से अपनी किसी पुरानी याद का साझा किया, और एक बेहतरीन नज्म भी हवाले की यह उस घटना को बेहद करीब से महसूस करने की कवायद लगती हैं। हो सकता है इसका सबब किसी जख्म से हो, किसी कसक से हो या फिर किसी अनकहे किस्से से रूबरू होने की बात हो। फिर भी ये कहना कि-‘‘पता नहीं उम्र कच्ची थी या प्यार का रंग लेकिन प्यार रूसवा हो गया।’’ किसी खरोंच लगे हुए निशानों का पता देता हैं।
गहरी और मार्मिक रचना।
lagta hai bahut gahri chot pahunchi hai. aansoo ka ek ek katra shabd ka roop lekar kavita men sama gaya hai. bahut bahut bahut badhai.
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दिल को छु कर निकल गयी यह रचना..............कुछ हिलता हुवा सा महसूस हुवा मुझे
खूबसूरत नज़्म है, और विवरण ने संजीदा कर दिया.
मर्म-स्पर्शी रचना खासकर तब जब आपने अपने कथ्य से इस कविता को जोड़ा है। आपकी संवेदनशीलता को नमस्कार।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
कच्चे ख्याल ....पर कितने उजले......
आम के बाग़ों से तो मेरा अज़ीम रिश्ता है, इन्हीं को देखते हुए बड़ा हुआ हूँ
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
मार्मिक रचना है.
ye rachanaa wakayee jhkjhor ke rakhdene waali bahot hi marmik hai ...
arsh
आप बहुत बेहतरीन लिखती हैं ...रचना ने झकझोर कर रख दिया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ख्यालो में गोते खाना भी कभी कभी अच्छा लगता है.. बहुत ही बढ़िया
अच्छी लगी आपकी रचना .
मार्मिक सुंदर रचना,
दिल को छू गयी.
कायनात का महकना ...
और दूर से आता तूफान ...कांपा तो परिंदा भी होगा
पहली बार ख्याल से सामना हुआ उस पेड़ के नीचे जिस पर अभी अभी बौर आया था ख्याल बौर से खेलने लगा
bhut hi sundar vichar .
marm-sparshi kavita.
इस घटना और आपकी कविता को पढकर मन भारी हो गया।
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SBAI TSALIIM
kya kahu apke bhaavo ke bare mein
akhir dil ko nram bna diya
bhaut dino ke baad apke blog par nazar dali aur man kush ho
best mam
bahut achha likha aapne.
Bahut sundar rachna...achhee abivyakti...
बौर ने साए पर बिखरना और कायनात का महकना महसूस किया लेकिन आने वाले तूफ़ान को नहीं देखा.ऐसा ही उस लडकी के साथ भी हुआ.
khayalon se khelne ka khayal ...ati sundar khayal...
itni achhi shuruvaat hai...agle ansh ka aur kitna intezaar karna hoga...yakeenan dil ko chhooyega wo
www.pyasasajal.blogspot.com
वाहवा बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद पर इस प्रस्तुति का कारण मन को अशांत कर गया
apke blog par aana achcha laga ....thanx
ek sukoon mila aapke blog par aakar.kabhi fursat mile to hamare blog par bhi aayega............ pyar ko samazna bhi asan nhi hota
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