Friday, April 10, 2009
अक्षर......जो भीतर में उतर आते हैं.......
` वो है ` और ´वो था,` इसके बीच का फासला केवल दुनिया का बनाया हुआ है, मोहब्बत करने वाले यह फासला नहीं मानते हैं...........
दिल की मिट्टी में जब किसी का नाम अंकुरित हो जाता है.........जब उसकी पहचान पनप जाती है तो पेड़ की ‘ााखा कटने के बाद भी सलामत रहती है। जहां चिंतन का बौर उसी तरह से पड़ता है, अनुभव की पत्तियां उसी तरह पनपती हैं और खामोशी की खुशूब उसी तरह से उठती है......अमृता जी इस बारे में एक बहुत अच्चा और रूहानी जज्बा रखती हैं, उनके कहे अनुसार, जिसने भी रजनीश को पाया है,उसके लिये रजनीश कभी ´था ` नहीं हो सकता है........
वो हवा में है, जिसमें सभी सांस लेते हैं.......
रजीनश की बात वो इस तरह से कहती हैं.......किताबों में पड़े हुए अक्षर मर जाते हैं, इस लिये किताबों की बात नहीं, उन अक्षरों की बात है जो अपने भीतर उतार लिये हैं.......जो भीतर में बो दिये हैं.......अक्षर......जो भीतर में उतर आते हैं.......वो मरते नहीं और .....वो धड़कते हैं .....दिलों में बस जाते हैं अमृता जी को पता था कि आगे क्या होने वाला है, इसी लिये उन्होंनें ऐसी बात कही......
.......और अब, इमरोज कभी अमृता जी को `थी´ करके नहीं बुलाते हैं, जब भी बात होती है, वे उन्हें `हैं´ करके ही बात करते हैं....... वो हमारे साथ ही हैं,
उनकी बातें मुझे क्योें कर आज याद आ गई........आज विक्टोरिया पार्क अग्निकांड को तीन वशZ हो गये, उस स्थल पर आज उन सभी को याद किया गया जो इस हादसे में गुजर गये। वहीं किसी ने कह दिया, अग्निकांड में जाने वाले कहीं गये नहीं हैं, यहीं हैं यानि कि `हैं´ धड़कते अक्षरों की तरह से........
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23 comments:
wah, Amrita ko yad karne ka yah tarika bahoot manbhawan hai. Sachmuch shabad kee satta bahut vyapak hai. is dunia me pahle shabad aaya tab GOD aaye.sach hai na ???
बहुत ही ह्रदयविदारक त्रासदी की याद आपने दिला दी. अफ़सोस इसी का है कि हमारी व्यवस्थाएँ इतने भीषण हादसों से भी सबक नहीं लेती. फिर उस तरह के हादसे न हों. वैसे दृश्य उपस्थित न हों, इसके लिए कुछ नहीं किया गया. विक्टोरिया पार्क हादसे के बाद भी कई स्थानों पर उसी तरह के दृश्य उत्पन्न हो चुके हैं. निरीह लोगों की अमूल्य जान से खिलवाड़ पता नहीं कब तक होता रहेगा.
आपने अमृता जी को बहुत ही गूढ अर्थों मे याद किया है इस वाकये के साथ जोडकर. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही भावुक कर देने वाली पोस्ट. आभार.
wah mam....
'woh hain aur woh tha' great world hain real mein its very nice post... bahut dino baad apne post kiya hai.
सुन्दर और भावभीनी प्रस्तुति।
भावनाओ से लबलबाती पोस्ट
आभार
आपके दिल से निकला दार्शनिक अंदाज गहरे अर्थ समेटे हुए है।
बहुत अच्छा लिखा है , अक्षर जो अन्दर उतर जाते हैं | मन के अहसास कभी मरते हैं , ये दिन रात साथ चलते हैं | आपने गीत की शक्ल में मेरी पोस्ट पर टिप्पणी दी , बहुत अच्छा लगा , कुछ गीत ऐसे ही होते हैं , दूसरे ने मेरी ही बात कही हो जैसे |
ise bhi bhavnaon se labrez kavita hi kahunga.
अमृता जी को ऐसे याद करना..क्या बात है..आभार.
जी शुक्रिया ..अमृता जी कोयाद करने...उनपर इतनी संवेदनाओं के साथ लिखने के लिए....
वाह ...मनविंदर जी आपका अमृता को याद करने का तरीका भी भा गया ...हाँ इमरोज़ जी तो मानते ही नहीं की अमृता अब उनके बीच नहीं है ...सच है जो कहीं अन्दर रूह तक बसी हो उसे कहीं भला कोई अलग कर सकता है....??
मैं तेरे साहां विच
मैं तेरे हंजुआं विच
मैं तेरे हासे विच
वेख माहि वे
मैं तेरे अंग अंग विच
वसदी....!!
बहुत सुंदर पोस्ट .
"आज विक्टोरिया पार्क अग्निकांड को तीन वर्ष
हो गये, उस स्थल पर आज उन सभी को याद किया गया जो इस हादसे में गुजर गये। वहीं किसी ने कह दिया, अग्निकांड में जाने वाले कहीं गये नहीं हैं, यहीं हैं यानि कि `हैं´ धड़कते अक्षरों की तरह से........"
मनविंदर भिम्बर जी।
अक्षर.....भीतर में उतर गये हैं.......।
वो है और वो थे के मध्य ........सुन्दर रचा हुवा संसार है.........अमृता जी की जो भी बात कही जाए कम है
मनविंदर जी,
क्या खूब लिखा है. शब्द जैसे सिर्फ इन्हीम अहसासो को व्यक्त करने के लिये ही बने हो.
मुरीद हो गया.
और भी बहुत कुछ पढना और लिखना बाकी है.
मुकेश कुमार तिवारी
victoria park kaa haadsaa mahaz haadsaa naa hokar meerut ke consumers ke virudh ek shadyantr ke roop main saamne aayaa hai.abhaagee 10 taareekh ko aapne yeh vednaa,samvednaa prakat ki hai .khaanikaaron ki raani AMRITA PREETAM ko sradhanjali ka yeh tareekaa bhee saraahniya hai.jhallevichar.blogspot.com
आपके निजी लेखन और पत्रकारिता के मेल से बना ये छोटा सा परन्तु कही गहरे मतलब लिया हुआ आलेख भी आपकी शैली का एक हिस्सा हैं। मैं समझ नही पाया रजनीश का सन्दर्भ किससे लिये प्रयोग हुआ हैं। मैं रजनीश का अर्थ सिर्फ ओशो से ही लेता हूं ना इसलिये, जब भी उनकी बात होती हैं मेरे कान खड़े हो जाते हैं।
आपने सच ही कहा है जाने वाले कहीं
नही जाते , वो हमारी यादों मे जीते हैं
और जो जिंदा है उन्हे कभी 'था ' नही
कहा जाता
जो अक्षर भीतर से उतरते हैं, वही दूसरों के दिलों में पैठ बना पाते हैं। बधाई।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
भीगी भावनाओ से भीगी हुई पोस्ट के लिए धन्यवाद
शोभना चौरे
आपकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति सराहनीय है.अमृता जी के लेखन के तेवर से असहमति हो सकती है, किन्तु साहित्य के प्रति उनके अवदान को नकारा नहीं जा सकता.
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