Thursday, March 26, 2009
अक्षरों का यथार्थ ............
कुछ लेखकों को पढ़ते पढ़ते कई बार ऐसा होता है, जब अक्षर अपने होने का अहसास दिलाते हैं। कई अक्षर बाहर से कुछ और दिखते हैं, उनके भीतर उतर कर देखो तो उनके अर्थ कुछ और ही होते हैं। ऐसे ही कई अक्षरों ने मेरी रूह को छू लिया............
विमल मित्र की कहानी ´घरंती` इस समय याद आ रही है। कहानी कुछ इस तहर से है..........चौधराइन एक मकान की मालिक है और अपने मकान के कमरे घंटों के हिसाब से मदोंZ को किराये पर देती है............ये वे मर्द हैं जो गैर औरत के साथ दो घंटे गुजारने के लिये आते हैं। ऐसे ही आने वालों में एक दिन एक ऐसी लड़की भी ओती है जिसके पास अपने महबूब के साथ घड़ी भर बात करने के लिये कोई जगह नहीं है। दोनों गरीबी और मुफलिसी के मारे हुए हैं पर दोनों छोटी मोटी नौकरी करते हैं। लड़की घर से खाना लाती है, वही खाते हैं और आगे आने वाले समय के लिये सपने सजाते हैं। सपने बुन रहे थे कि कि लड़के की नौकरी छूट जाती है। जो सपने किनारों की तलाश में थे, तूफान में पड़ी कश्ती की तहर से ढोलने लगे। उसी दौरान एक बिगड़ेल रईसजादा चौधराइन से कहता है कि अगर वह लड़की उसे एक रात के लिये मिल जाये तो वह उसे एक हजार रूपया दे सकता है। चौधराइन नहीं चाहती कि ऐसा हो लेकिन एक दिन मजाक मजाक में उस लड़की को रइसजादे की ख्वाइश का जिक्र करती है। लड़की उस प्रस्ताव को मान जाती है। लड़की को एक हजार रूपया मिल गया। तूफान में ढोल रही सपनों की कश्ती को चप्पू की मानिद.........दो प्रेमियों की ढोल रही कश्ती किनारे लग गई। चौधराइन को जब दोनों की ‘ाादी का संदेश मिला तो वह तड़प उठी। सोच रही थी कि जो लड़की एक रात के लिये बिक गई, वह अब घर में रखने लायक कहां रह गई, वह तो बाजार की चीज हो गई। लड़की पर सपनों का साया था। उस रात रइसजादे ने उसके बदन को छुआ था, उसके सपनों , उसके महबूब के दिल को वह कहां छू पाया था। विमल मित्र भी यह कहानी लिख कर सोच में पड़ गये, अरे यह क्या हो गया ??? एक साधारण मन, साधारण सोच और संस्कारों के दायरे में घिर हुआ इंसान............. इसके बाद तो विमल मित्र इंसानी चिंतन की तकदीर लिखते चले गये। सच ,उन्होंने पाठकों को बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया और उनका आसमान भी बढ़ा कर दिया। इसी लिये वे बिमल दा कहलाये।
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24 comments:
awasar milega to zarur padhungi ye kahaani..magar aap ki jubaani ise sunana bahut achchha laga....!
सच कहा...बिमल मित्र एक अनूठे रचना कार थे...ऐसे कथा शिल्पी बिरले ही पैदा होते हैं....उनकी रचनाएँ प्रभावशाली और सामाजिक परिवेश का जीता जागता नमूना होती थीं...बचपन से अब तक लगभग उनका सारा ही साहित्य पढ़ डाला है...उनका पात्र चित्रण और कहानी कहने का अंदाज़ गज़ब का है...
नीरज
अभी तक ये समझ नही पा रहा हूं आपका काव्य ज्यादा प्रबल है, या गद्य पर अच्छा अधिकार। ये असमंजस हैं। खैर विमल दा के क्या कहने। गुलजार पर तो उनका बहुत असर था। आपके पुराने नावेल गजब का टच लिये हुए होते थे। बंगाली पृष्ठभूमि में रचे-बचे रचनासंसार ने विमलदा को अमर बना दिया हैं। आपने विमल मित्र जी की इसी कहानी को चुना इससे पहले भी आप इस्मत आपा की ’लिहाफ’ का जिक्र कर चुकी हैं। ये दृष्टीकोण आपको औरो से अलग बनाता हैं।
विमल दा का उपन्यास खरीदी कोडि़यों के मोल जरुर पढि़ए।
bahut pasand mujhey bhi..
सच कहा है आपने।
दिल को छू जाने वाली कहानी का जिक्र किया है अब दिल में उथलपुथल हो रही है कि विमल जी की यह कहानी मैं भी अवश्य और जल्द ही पढूं बहुत बहुत धन्यवाद इससे रूबरू कराने के लिए आपका
ये कहानी और उसका कथय दरअसल प्रेम की को एक ,निर्धारित पवित्रता से ऊपर देखती है ...लड़की का प्रेम ...उस हादसे को जो अप्रत्याशित तूफान की तरह आता है --चला जाता है उसके जीवन मैं ---सर्वोपरी है--एक बेहतर कहानी और बेहतर चुनाव हेतु आपको बधाई...
जल्द ही इसको पढूंगी आपने इसको बहुत रोचक ढंग से कहा है ..उत्सुकता जगा दी है इसको पढने की
ये कहानी और उसका कथय दरअसल प्रेम की ताकत को एक निर्धारित पवित्रता से ऊपर देखती है ...लड़की का प्रेम ...उस हादसे को जो अप्रत्याशित तूफान की तरह आता है --चला जाता है उसके जीवन मैं कमतर है ---सर्वोपरी है यदि है तो प्रेम के लिए उसकी जीवंत इक्छा शक्ति --एक बेहतर कहानी और बेहतर चुनाव हेतु आपको बधाई...इनदिनों मैत्रीय पुष्प की...न हन्यते ..पढ़ रही हूँ ,शायद पढ़ी हो ...इसे देर से मौका मिला है पढने का गर कुछ लिखूंगी तो सुचना दूंगी समय हो तो देखना ...
ये कहानी और उसका कथय दरअसल प्रेम की ताकत को एक निर्धारित पवित्रता से ऊपर देखती है ...लड़की का प्रेम ...उस हादसे को जो अप्रत्याशित तूफान की तरह आता है --चला जाता है उसके जीवन मैं कमतर है ---सर्वोपरी है यदि है तो प्रेम के लिए उसकी जीवंत इक्छा शक्ति --एक बेहतर कहानी और बेहतर चुनाव हेतु आपको बधाई...इनदिनों मैत्रीय पुष्प की...न हन्यते ..पढ़ रही हूँ ,शायद पढ़ी हो ...इसे देर से मौका मिला है पढने का गर कुछ लिखूंगी तो सुचना दूंगी समय हो तो देखना ...
मानविन्दर जी, विमल दा के तो कहने ही क्या, जिन्दगी के यथार्थ को शब्दों में पिरोने की उनकी कला को कोई सानी नहीं है। आपने प्रभावशाली ढंग से उनकी यादें ताजा कर दीं। धन्यवाद।
आपने जिस तरह से कहानी बयान की है लगता है अगली बार लाईब्रेरी जाने पर सबसे पहले यही कहानी ढूढनी है पर आपने तो उस किताब नाम नही बताया जिसमें यह कहानी है। पर उत्सुकता काफी जगा दी।
आपने जिस कहानी का जिक्र किया, वह शायद मैंने सारिका में पढ़ी थी। विमल दा की कहानियाँ, उनके समकालीन लेखकों के ही समान, मान्वीय सम्वेदनायों को इंगित करती हैं। मुझे उनकी 'पैसा परमेश्वर' और 'पति पत्नी संवाद' बेहद पसंद हैं। एक बानगी देखिये, विमल दा कहते हैं:
संसार में एक मनुष्य से दूसरे के जितने संबंध हो सकते हैं, उनमें सबसे जटिल और कुटिल संबंध है, पति-पत्नी का। ... ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इस संबंध की गुत्थी खुल सकी है। ...यह विषय-वस्तु चाहे जितनी पुरानी हो, विवाह-व्यवस्था शुरु होने के बाद से ही वह मानव-समाज की चिरंतन समस्या मानी जाती है।
विमल मित्र मेरे पसंदीदा उपन्यासकारो में से एक रहे है..उनका एक उपन्यास जिस पर दूरदर्शन में सीरियल बना ओर नूतन ने भी अभिनय किया ....के मैं चरित्र ने मुझे एक समय काफी प्रभावित किया था जिसमे पुत्र अपने पिता के पापो का प्रयाश्चित करने के लिए स्वंय दुःख भोगता है ...गुरुदत्त द्वारा साहब बीवी गुलाम फिल्म उनके महिला पात्रो के चारित्री करण की ख़ास सूझ बूझ को उजागर करते है .
आपने तो ऐसा विवरण दिया की उत्सुकता अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया...जल्दी ही पढना पड़ेगा...
आभार,जानकारी देने के लिए.
वाह जी मैं तो शुरु से ही आपकी कलम के ज़ोर का पैरवी हूँ!
विमल दा को मैं पढ़ चुका हूँ ,ऐसे रचना धर्मी विरले ही मिलतें हैं
बिमल दा का लेखन इतना मन को छूने वाला है.....उनकी कहानियाँ अक्सर कुछ न कुछ कहती हुयी, कुछ सोचने को मजबूर करती हैं. बहूत ही अद्भुद रचना का वर्णन आपने खूबसूरती से किया है
बहुत सुंदर जानकरी दी आप ने , अब जरुर पढेगे विमल दा की कहानियां... अगर नेट पर मिली नही तो जब भी भारत आये, तो जरुर खरीदेगे.
धन्यवाद
Vaise us raisjaade per bhi chodhrayin ko ungli uthani caahiye thi. tan to uska bhi bika hi tha...poori kahani padhne ki lalsa jaga di aapne...
respected Manvindarji
aapka article VENTILATOR PAR HAIN DAOCTOR KE JAZBAAT padha ..jo ab is page par nahi hai ...ise padhne baad se mai uljhan me thi ...aaj socha aapse baat kar hi loon ...
Manvindarji , aankhon dekhi aur kaano suni baat hamesha sahi nahi hoti ..baat choti si hai par hai bahut gahari ...maanti hoon shabd aapde pen ki nauk par khelte hain par aapko ek salah dungi ...kisi ki bhavnaaon se na khelen to achcha hoga ..
Doctor ke seene me bhi dil hota hai ..unki bhi bhavnayen hoti hain ..unhi bhavnaon aur apni shapath ke kaaran wo kisi patient ko , jab tak uska bas chale , bachane ka bharsak prayaas karta hai...
patient ke saath uska koi rishta nahi hota , aisa aap sochti hain..unka rishta hota hai , insaniyat aur manavta ka ..
Medical college me khayi gayi shapath unka har patient ke saath ek rishta kayam kar deti hai..
Mai aapko ek hakikat batati hoon ..maine aise kayi case dekhe hain ki jab patient ek dr. se theek nahi hota to wo kisi khaas dost ke kahane par doosre dr. ke paas jata hai aur uske treatment se theek ho jata hai..jaanti hain aisa kyu hua ?...iska matlab ye nahi tha ki pahale wala dr. achcha nahi tha ya usne medicine galat di...aisa isliye hua kyunki uske dost ka doosre dr. par poora bharosa tha to uska vishvaas bhi us dr. par jam gaya ...aur is vishvaas ne uske apne ki jaan bacha li...
mere kahane ka aashaya aap samajh gayi hongi ...DR. AUR PATIENT KA RISHTA HAI VISHVAAS KA AUR BHAROSE KA ...
Par aaj ye rishta kamjor padta ja raha hai..aise me MEDIA SE JUDE AAP JAISE LOG IS VISHVAAS KO MAJBOOT BANANAE ME POORE SAMAJ KI MADAD KAR SAKTE HAIN ....
aapse ummeed karti hoon ki is tarha ke lekh likhne se pahale aap uski poori tahakikaat kar lengi...
Ant me kahana na hoga ki ..VISHVAAS PAR POORI DUNIYA KAYAM HAI ....
THANKS ...
Mrs manvinder regarding ur blog posted on 24/2/2009( which u have delated)
This was not acceptable and i am higly disturbed after ur comment regargdind late Mr NC GUPTA, Mrs ANITA DR LUBANA, Ms NIDHI and Mr Vijay Bhola they also feel same as i am feeling so ur alone to the comment u have posted.
i think u should feel sorry for this, and at least u should discuss with me before writing so bad about me
मनविंदर जी,आपने विमल दा की रचना ka सजीव वर्णन किया है.आप द्वारा मेरी पोस्ट पर की की गई टिप्पणी ने ने बहुत प्रभावित किया.आपका ब्लॉग देखते देखते पोस्ट दर पोस्ट पढ़ता गया.आपकी लेखनी बहुत सरल और प्रभावशाली है. आपको ब्लॉग पर एक वर्ष पूर्ण करने की बधाई.
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