Sunday, August 10, 2008

आंसू अगर बिकते कहीं..........

आज सुबह ही खबर मिली , विश्णु खन्ना नही रहे, गीतकार और पत्राकार विश्णु खन्ना। एक बार तो यकीन नहीं हुआ लेकिन फिर उसी क्षण एक सप्ताह पहले की फोन की बात याद आगई, और साथ ही याद आ गई उनके कुछ पक्तियां, फिर नई सुबह होगी फिर नया गीत होगा इस गीत को अब जाने दो इसे मत रोको मैंने वो डायरी खोली यहां एक पक्तियां मैंने लिख छोड़ी थी। उस दिन का मंजर भी सामने आ गया जब उन्हें उत्तर प्रदेष हिंदी संस्थान की ओर से महावीर प्रसाद द्विवेदी पत्राकारिता पुरस्कार मिलने पर एक समारोह मनाया था। उस दिन वे मंच से जी खोल कर बोले। कतिवा, गीत और आकाषवाणी की बाते हुई। फिर एक बार,उस दिन जब मैंने जब उनसे फोन पर उनके घर आने के लिये अनुमति मांगी तो वे मुझे गेट पर ही मिल गये। खूब बातें हुए थी उन दिन भी। कुछ बातें तो लिख कर भी की गई। महापौर के चुनाव के सिलसिले में मैं उनसे मिलने गई थी। उन्होने अपने परम मित्रा अभय गुप्त और भारत भूशण के लिये भी काफी भावुक बातें की और बताया कि अब इस कालोनी में आ कर उनसे दूर हो गया हूं और सेहत भी कहीं जाने की अनुमति नहीं देती है। चालीस साल आकाषवाणी को देने के बावजूद वे अपने उस दौर को कभी नहीं भूले। मुझे अपने आकाषवाणी के दौर की कई फोटो दिखाए। मैंने पहली बार यह महसूस किया कि यह इंसान कितना अकेला है। उनका एक बेटा है, एक बेटी है। बहूं बहुत ख्याल करती है लेकिन सब की अपनी अपनी दुनियां है, सभी व्यस्त हैं। यह व्यक्ति अगर चाहता तो आज न जाने कहां होता, कई ऐसे मौके आये जो उन्हें आसामन की बुलंदियों पर भी पहुंचा सकते थे लेकिन उन्होंने कभी अपने जमीर को अनदेखा नहीं किया। मुझसे बोले आंसू अगर बिकते कहीं होता बहुत धनवान मैं मुझे सुविधाओं की कभी कमी नहीं रहीं लेकिन मैंने अपने दिल की सुनी है। आज गीत बिकता है। गीतकार बिकता है। क्या करूं , मैं ऐसा नहीं हो सकता हूं। अगली पोस्ट में जारी रहेगा

4 comments:

Udan Tashtari said...

विष्णु खन्ना जी को श्रृद्धांजलि एवं नमन!!

Anita kumar said...

विष्णु खन्ना जी को मेरी भी श्रृद्धांजलि

Anonymous said...

विष्णु खन्ना के निधन का समाचार जैसे ही उनके पुत्र प्रतीक से मिला तो मैं सन्न रह गया। एक सप्ताह से मैं ऋचा से कहता था कि कल खन्ना जी से मिलने चलेंगे। मुझे लगा कि मैं अपने को धोखा दे रहा था।
खन्ना जी मेरे सबसे बुजुर्ग यार थे। कभी भी चले आते आैर कहते कि चलो कंसल हलवाई का कर्जा चुका आएं। दरअसल उन्हें कंसल की बालूशाही का बड़ा शौक था। अब पता नहीं कि कंसल का कर्ज मैं कैसे चुका पाउंगा।
खन्ना जी ने गीत नहीं बल्कि सूत्रवाक्य लिखे। उनके समकालीन उनका कोई भी गीतकार उनके रचना संसार के आगे नहीं ठहरता।

रंजू भाटिया said...

विष्णु खन्ना जी को श्रृद्धांजलि