Monday, October 17, 2011

अमृता का केवल अपने पात्रों पर भरोसा

अमृता का चेहरा जितना खूबसूरत है उतना ही मुकिश्ल भी बल्कि ज्यादा मुकिश्ल। उसके भाव बहुत जल्दी जल्दी बदलते हंै। इस चेहरे को किसी फोरम में रिकार्ड करना और वो भी पूरा का पूरा रिकार्ड करना बहुत कठिन काम है। उसके फोटो और स्कैच बहुत ही हार्ड होते हैं। अमृता खुद भी उन्हें देख कर कहती है, ये मै नहीं हूं। मैंने बहुत से चेहरे उकेरे है लेकिन मुझे किसी का चेहरा इतना मुश्किल नहीं लगा है। किसी भी चेहरे को उकेरने में मुझे कभी कुश्ती नहीं करनी पड़ी लेकिन अमृता का चेहरा, तौबा तौबा..पता नहीं किस होनी ने अमृता का चेहरा तराशा है। जितने उसके नैन नक्श तराशे हुए है, उतने ही मुश्किल भी। ब्रश को उकरने भी में भी मुश्किल महसूस होता है। मैं 14 साल से इस चेहरे को पढ़ रहा हूं लेकिन कभी यह चेहरा पास लगता है तो कभी नजदीक लेकिन समझ नहीं आता है। एक दिन इमरोज और अमृता पालम रोड की ओर से आ रहे थे, इमरोज ने कहा, शायरा, तुझे याद है कभी यहां खाली जमीन होती थी जहां तुमने कार चलना सीख रही थी लेकिन साइकिल से टक्कर होने पर तुमने कार चलानासीखना छोड़ दिया था। अमृता ने बहुत हिरख से मुझे देखा और कहा, तम्हें मुझे कार सीखने देना चाहिए था। मैंने कहा, शायरा तुम स्कूटर , साइकिल ट्रकों और छकड़ा गाड़ियों को अपनी कल से अलग रखो। इन्हें मेरे लिए रख दो। अमृता को किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं है। जब मैं किसी पर भरोसा कर कर बात करता हूं तो वह लाल बत्ती की तरह से जलने लगती हैै। मैं कहता हं, व्यक्ति पर एक बार तो भरोसा करने का मौका दिया जाना चाहिए। अमृता को केवल अपने और अपने पात्रों पर ही भरोसा है। जब वह पात्र कहानी से बाहर हो तो उ स पर वह भरोसा नहीं करती है। बरतना माजवाने के बाद वह कटोरी और चम्मच भी गिनती है। कहानी के भीतर जाने पर वही पात्र विश्वास करने योग हो जाते हैं। वह कहती है, बस मैं तेरे पर हजी विश्वास करती हूं, तू ही मेरा इकलौता दोस्त है। इमरोज पूछते हैं, फिर मेरे पर केसे भरोसा है। तमने ही तो कहा था कि तुम मेरे डाक्टर देव के डाक्टर देव हो।

3 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kitni khoobsoorat hai Amrita

vandana gupta said...

आह! क्या बात थी।

Hari Joshi said...

बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने..