Wednesday, March 31, 2010

मुद्दत बाद .....उम्रें ठहर गईं

मुद्दत बाद ......उम्रें ठहर गईं
उनकी नजरें मिलीं .......एक दूसरे को देखा , जैसे तपती गर्मी में ठन्डे पानी के घूंट भर लिए हों ।
पर ये क्या , उनकी प्यास तो वैसे ही धरी हुई थी ।
वो दिन , वो घडी , वो पल ऐसे गुजरा जैसे वो मेले में हैं ..... मेले के हिंडोले में अपनी उम्रों को बैठा कर हिलोर दे रहें हों । और वो दोनों उस पल, उस घडी और उस दिन के देनदार बन गये । अगले ही पल उन्हें हिंडोले से उतरना था । मेले से चले जाना था । उन्हें गम नहीं था । उन्होंने मेला मना लिया था । मेले की मिठाई चख ली थी । अब तो उन्हें अपने-अपने अरमानों की तह लगा कर रखनी थी।
फोटो गूगल से साभार

8 comments:

संजय भास्‍कर said...

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

इरशाद अली said...

क्या आप समझ सकते है, कि क्या कहा जा रहा है? मेम! भावनात्मक प्रस्तुतियों का ऐसा उतार-चढ़ाव आप दिखाते है जिससे हम जैसे अबोध इस भ्रम में पड़ जाते है, कि ये कितना आत्मकथ्य है, और कितना लिटरेरी।

समयचक्र said...

बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..आभार

ओमकार चौधरी said...

ye jeevan hai. es jeevan ka yahi hai rang roop. thode gam hain.thodi khishiyan..yahi hai chhanv dhoop.
kam shabdon me bahut kuchh kah diya aapne. jeevan bhi mele ki tarah hi hai. milna-bichhudna. do pal ka sukh our vichhoh ka dukh..yahi sab hai. bahut achchi rachna ke liye badhai

M VERMA said...

जबरदस्त

अजित गुप्ता का कोना said...

प्रेम का भाव एक पल का भी मिले तो वो बेहद अच्‍छा लगता है। अच्‍छी अभिव्‍यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति

प्रदीप मानोरिया said...

प्रभावी अभिव्यक्ति