Monday, March 29, 2010

अपनी आंख के श्राप को क्या कहूँ .....

ईश्वर की ऑंख ईश्वर के चेहरे पर हो तो वरदान है, लेकिन इन्सान के चेहरे पर लग जाए तो शाप हो जाती है .....अपनी आंख को क्या कहूँ ........
कभी कभी ये श्राप मेरी आंख को लग जाता है ..... कई बार ......
उस दिन भी वही हुआ ......
उस दिन .......
थाने के कंट्रोल रूम में बेठी तीन लड़कियां ......मीडिया के फ्लेश बार बार क्लिक किये जा रहे थे .....खाकी वर्दी वाले ने पूछा ......धंधा करती हो क्या ?एक लड़की ने कहा .... नहीं साहब ....में तो अपनी मौसी के पास रहती हूँ बाकी की दो लड़कियां रोये जा रहीं थी .....वो तीन लड़कियां .....जो १४ साल से भी कम की रही होंगी .......सवाल पे सावल .....हर जवाब में आंसुओं का सैलाब .........
और शाम को उन्हें नारी निकेतन भेज दिया गया .......कुछ दिन बाद मौसी उन्हें से ले गई उसी दुनिया में...... जहाँ जिस्म के सौदागर आते है

9 comments:

Shekhar Kumawat said...

bahut hi sandhik bat he

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

समाज अभिजात्य के मुंह पर थप्पड़.

डॉ .अनुराग said...

फ्लेश....कैमरा...क्लिक......बाइट्स....!
....रोब ......गाली....ओर पैसा .....!
गरीबी .....औरत ......वही जिंदगी ...


सबकी अपनी अपनी दुनिया है

M VERMA said...

कुरेद गयी रचना

डॉ. मनोज मिश्र said...

.. जहाँ जिस्म के सौदागर आते....
yh kaisa jeevan hai.

सुशील छौक्कर said...

ये दुनिया ऐसी क्यूँ है?

Satish Saxena said...

मार्मिक ...
किसी के पास इन बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने का समय ही नहीं है ....हम इंसान हैं ??

काफी दिन बाद आपको पढ़ पाया कुछ अलग सा नयापन महसूस हुआ ! शुभकामनायें !

अजित गुप्ता का कोना said...

इस विषय पर आगरा की उषा यादव ने बहुत ही मार्मिक उपन्‍यास लिखा है जिसमें इन नन्‍हीं कलियों की दर्दनाक दास्‍तान को खोजी तरीके से लिखा है।

Harish Joshi said...

वाह मैडम अपने तो कमल कर दिया ... क्या खूब वर्णन करा है.. नमन