Tuesday, January 26, 2010
इमरोज ......इक लोकगीत सा
एक साया जो सपने में उतरने लगा था....कुछ पहचान नहीं आ रही थी कि किसका साया है। दिखायी देता है कि एक अकेला मकान है, आसपास में कोई बस्ती नहीं है.....उस मकान की दूसरी मंजिल पर एक खिड़की है जिसमें कोई खड़ा है कंधों पर ‘ााल डाल कर। खिड़की के पास रखी मेज पर बड़ा सा कैनवास है जिस पर पेंटिंग बनी हुई है, पर दिखायी नहीं दे रही है।
यह अमृता का सपना है जो उन्हें कई वशोZं तक आता रहा...... अमृता को जब इमरोज मिले तो इस सपने का अर्थ समझ आया लेकिन फिर कभी ये सपना भी नहीं आया।
मुझे याद है जब मैं पहली बार इमरोज से मिली थी, उस समय अमृता जी जीवित थी। इमरोज जी उस दिन ‘ााल ओड़े हुए थे। अमृता जी का सपना अचानक मेरी सोचों पर उतर आया। इमरोज जो अमृता की जिन्दगी में एक ऐसी बहार बन कर आए जिसकी खुशबू आज भी बरकार है। आज इमरोज का जन्मदिन है। अपनी इस नज्म में इमरोज अपने आपको कुछ तरह से बयान करते हैं।
मैं एक लोक गीत
बेनाम
हवा में खड़ा
हवा का हिस्सा
जिसे अच्छा लगे वो
याद बना ले
और अच्छा लगे
तो अपना ले
जी में आए तो गुनगुना ले
मैं इक लोकगीत
सिर्फ इक लोक लोकगीत
जिसे नाम की कभी दरकार नहीं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
क्या बात है...मैं एक लोक गीत...
जन्म दिवस की बधाई इमरोज को!
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
जन्म दिन की बधाई ईमरोज़ को ।
मैं एक लोक गीत....
बेहद खूबसूरत.
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ...
इस दिन जन्मदिन .....मेरे सबसे बड़े भाई का जन्मदिन भी इसी दिन था .....
जन्म दिवस की बधाई इमरोज को!
आपकी जुबानी
इमरोज की कहानी
अच्छी लगी
इमरोज ......इक लोकगीत
क्या बात है गीत ऐसा जिसे लोग गुनगुनाये
aur is par kyaa kahun....aise men to aankhe band kar pighal jaya karta hun....!!
imroj ji ko janamdiwas ki hardik badhayi aur aapka shukriya .
happy bday to imroz
bahut he sundar abhivyakti MB ji....
इमरोज़ जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर पोस्ट
आभार ...................
Post a Comment