Thursday, December 17, 2009
उस खबर के अक्षर और उनकी अजमत
बात बहुत पुरानी है......... मेरे पुराने घर के सामने एक क्रिस्चयन परिवार रहता था। उनके घर के एक बुजुर्ग सड़क पार वाली सामने की चाय की दुकान पर बैठे रहते थे। एक दिन उनकी बहू मुझसे मिलने दोपहर को आई। मैं दोपहर में लंच के बाद ऑफिस के लिऐ निकलने को तैयार थी। कहने लगी , एक बच्ची है, उसे आपसे मिलाना है। कुछ ही देर में वह बच्ची को ले आई। कहने लगी, ये बच्ची रेलवे रोड पर अकेली जा रही थी, पता नहीं कहां की है, कुछ बता ही नहीं रही है। मेरे ससुर इसे ले आए थे, आप इसके बारे में कुछ लिख दो, हो सकता है, इसके घर के लोग इसे मिल जाए। मैंने लड़की से पूछा कि वह कहां की रहने वाली है लेकिन उसने कुछ ठीक से बताया नहीं। लड़की की उम्र यही कोई नौ दस साल की होगी। मै हैरान थी कि लड़की इतनी छोटी भी नहीं थी कि अपना पता न बता सके, फिर भी मैंने उससे बातचीत शुरू की .......उसने अपने बारे में नाम के सिवाय और कुछ भी नहीं बताया। खैर, मैंने उसका फोटो करवा कर उसके बारे में जो भी जानकारी क्रिस्चयन परिवार ने दी, नोट कर ली। चलते चलते , मैंने उससे कहा, अपना नाम लिख कर दिखाए, उसने एक दम से कलम उठाया और कागज पर पास ले जाने पर बाद रोक दिया। कुछ लिखा नहीं....मुझे ये बहुत अजीब लगा .... मैंने आफिस में जा कर एक चार कालम की खबर बना दी। दूसरे दिन क्रिस्चयन की बहू मेरे पास भागी भागी आयी और कहने लगी कि अखबार में पढ़ने के बाद उस बच्ची प्रीति के घर से उस लेने आए हैं। सदर थाने की पुलिस भी आयी हुई,आप भी साथ चलो। मैं गई तो प्रीति पुलिस के बीच घिरी बैठी थी। थोड़ी सी औपचारिकता के बाद पुलिस ने प्रीति को उसके घर वालों के हवाले कर दिया। मुझे खुशी हो रही थी कि एक चार कालम की खबर के कारण प्रीति को उसके माता पिता मिल गये थे।आज अचानक से प्रीति के माता पिता मेरा पता खोजते हुए आए। मुझे प्रीति शादी का कार्ड देने के लिए। प्रीति के पिता ने बताया कि उस दिन प्रीति एक छोटी सी बात पर नाराज हो कर बुलंदशहर से गाड़ी में बैठ कर मेरठ आ गई थी। आप उस दिन खबर न लिखती तो पता नहीं प्रीति कभी घर भी वापस लौट पाती या नहीं। प्रीति तो पूरी तरह से तैयार थी वो कभी घर न लौटे, इसी लिए तो उसने आपको कागज पर कुछ भी लिख कर नहीं दिखाया था।
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12 comments:
मन खुश हो गया।
वाकई दिल खुश हो गया, ऐसे काम बहुत सुख देते हैं।
sach is khushi se badhkar to aur koi khushi ho hi nhi sakti........badhayi.
बहुत ही अच्छी खबर दी है निसंदेह आप साधुवाद की पात्र हैं
ज़िन्दगी युही कभी बीच राह मिल जाती है... मैं इमेजिन कर सकता हूँ वो पल जब आपके हाथ में वो कार्ड आया होगा..
यही मानवता की पहचान है..सार्थक जीवन जीने की कला..बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..आभार
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अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़कर , वाकई जिंदगी इसी का तो नाम है....
बहुत सार्थक परिणाम निकला उस खबर का...
Wahwa...wahwa...badhai..
सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
धन्यवाद् - शुभकामनाएं.
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