Sunday, May 24, 2009

जिन्दगी के कुछ टुकड़े ......जो गिर गए कहीं

मेरा एक टुकड़ा मैले दिनों की सीड़ियों में गिर गया है। मेरा एक टुकड़ा खुश रंग आंखों के प्याले में गिर गया है। मेरा एक टुकड़ा बरसात के मौसम में , जुदायी में गिर गया है। मेरा एक टुकड़ा एक छोटी सी भूल के किनारे गिर गया है।मेरा एक टुकड़ा खामोशी के बीच गिर गया है। मेरा एक टुकड़ा टूटे हुए वायदे में गिर गया है। मेरा एक हिस्सा सच के सवाल के किनारे गिर पड़ा हैं। मेरा एक टुकड़ा ........ओह ! अब कैसे कहें..... क्या क्या कहें......? कहां कहां ढूढें़ हम अपने टुकड़े................... किसी की लिखी हुईं इन पक्तियों को पढ़ते पढ़ते पता नहीं क्यों किसी जंगल में कई काल, कई जन्म चलते जाने का अहसास होता है।
अरसा पहले एक नज्म लिखी थी......
जिस घड़ी हमने हंसना था खिलखिला कर

उस घड़ी हमने अपने सांसों की आवाज को
अपनी मुठ्टी में कस कर पकड़ लिया
और देखते रहे ---सूरज का बेअवाज सफर पड़ों की बेआवाज सरसराहट

40 comments:

शारदा अरोरा said...

ये जो सोच तुम पिलाते हो , कितने सारे क्यों उठ खड़े होते हैं सीने में , कोई जवाब नहीं मिलता , घबरा के अनदेखा करना चाहती हूँ , पर अन्दर की आवाज को झुठलाया नहीं जा सकता |

संगीता पुरी said...

बहुत सही लिखा आपने ..

Yogesh Verma Swapn said...

umda. bahut umda.

vandana gupta said...

sach kaha..........na jaane kahan kahan tukde gir gaye hain ab sametna bhi chaho to nhi samet sakte kyunki daman hi nhi bacha.
sundar rachna

सुशील छौक्कर said...

सधे शब्दों में बहुत सही और सच लिखा है। बहुत ही उम्दा।

hem pandey said...

टुकड़ा टुकड़ा होना नियति का खेल है और समग्र हो जाना व्यक्ति का आत्मबल.

निर्मला कपिला said...

sagar me gagar bahut sunder abhivyakti hai

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर लिखा. शुभकामनाएं.

रामराम.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

नियति है ये.....

डिम्पल मल्होत्रा said...

aap ne tukdo me boht sunder post bna di...

वर्षा said...

sachmuch sundar, zindgi ke beech kho gaye zindgi ke tukde.

Prem Farukhabadi said...

बहुत ही उम्दा। शुभकामनाएं!!!

वीनस केसरी said...

आपने किखा तो लेख की तरह है मगर आपके भाग किसी सुन्दर कविता की तरह है बहुत सुन्दर

वीनस केसरी

Anonymous said...

खूबसूरत इंतख़ाब

संध्या आर्य said...

isi tukade ki talash me jindgi bhatakti rahati hai our samay shayad khatma ho jaatee hai

वीनस केसरी said...

आपने लिखा तो लेख की तरह है मगर आपके भाव किसी सुन्दर कविता की तरह है,
बहुत सुन्दर

शब्द गलत टाइप हो गए इसलिए पुनः टिप्पडी कर रहा हूँ
वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

आह!! काव्यमय गद्य..बहुत भावपूर्ण.

दर्पण साह said...

देखते रहे ---सूरज का बेअवाज सफर पड़ों की बेआवाज सरसराहट
...

wow !! Flawless !!!

डॉ .अनुराग said...

ओह.......बेमिसाल...अमृता की दीवानी से यही उम्मीदे होती है ....ओर वो जब कई टुकड़े समेट कर कागजो में उन्हें पैबंद लगकर एक नज़्म की शक्ल देती है ....कागज भी रोशन हो जाता है सूरज की माफिक.

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया कविता लिखा है आपने!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

बहुत अच्छी है. ये ज़िन्दगी टुकडों टुकडों में ही पूरी होती है. ये सब न हो तो शायद नीरस ही हो जाए.

इरशाद अली said...

बहुत पहले शायरी का तबसरा करते हुए अचानक एक दोस्त ने बहुत शानदार बात कही थी, कहा कि-एक वो लोग है जो अच्छी शायरी या साहित्य जैसा कुछ लिखने की कोशिश करते है, और एक वो होते है जिन पर शायरी उतरती है, तो आप दूसरी तरह के लोगों में से हैं मेम। बार-बार सोचता हूं कि आपने आज जो लिखा है वो सबसे अच्छा है, लेकिन हर बार गलत साबित कर दिया जाता हूं। एक बात बताये-ऐसा लिखने के लिये टयूशन कहां पर मिलती हैं। एक-एक पेराग्राफ, एक-एक किताब हुआ जाता हैं।

Girish Kumar Billore said...

जारी रहे
सादर

Renu goel said...

जिंदगी बिखरे हुए टुकड़ों मे सिमटी नज़र आती है
कभी खिलखिलाती बेबाक, कभी खामोश नज़र आती है

टुकड़े टुकड़े जिंदगी का भावपूर्ण चित्रण.....

नवनीत नीरव said...

माना जिंदगी कई टुकडों में बनी है . पर हर टुकड़े का एक अपना रंग है .कुछ सुखद रंग तो कुछ फीके से रंग . यह बात हम पर निर्भर करती है की हम किस तरह का रंग पसंद करते है.जो यादें अच्छी लगती हैं उसे हम सभी समेटना चाहते हैं.अपने मन में अपने ख्यालों में . हो सकता है जो टुकड़े कहीं गिर गए हों उनका हमने उतना ख्याल न किया हो और आज जब जरूरत पड़ी है तो उसे याद कर रहे हैं........सच हम सभी कभी -कभी कितना लापरवाह हो जाते हैं.
नवनीत नीरव

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

जब-जब थक जाईए ,
रूकइए सुस्ताइए ,
अपनी यादों की छाँव में ,
जरा सोचिये भी ,
क्या -क्या ले कर थे निकले ,
उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
रिश्तों को कौन
सहेज सका , कितना ,
खुद मैं भी जी पाया ,
गोया कि सफ़र अभी है बाकी|

डॉ. मनोज मिश्र said...

सच और सुंदर .

के सी said...

पेडों की बेआवाज़ सरसराहट...
मनविंदर जी बात कुछ है तो सही ..... फिर से पढूंगा

Arshia Ali said...
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रश्मि प्रभा... said...

जिस घड़ी हमने हंसना था खिलखिला कर

उस घड़ी हमने अपने सांसों की आवाज को
अपनी मुठ्टी में कस कर पकड़ लिया
और देखते रहे ---सूरज का बेअवाज सफर पड़ों की बेआवाज सरसराहट.....bahut badhiyaa

Gurinderjit Singh (Guri@Khalsa.com) said...

ਮਨਮਿੰਦਰ ਜੀ,
ਬਹੁਤ ਖੂਬ ਤਸਵੀਰ ਖਿੱਚੀ ਹੈ..
ਦੇਰ ਨਾਲ ਚੱਕਰ ਮਾਰਨ ਲਈ ਗੁਸਤਾਖੀ ਮੁਆਫ!

Anonymous said...

अच्छी कविता....कविता पर मेरे विचार कुछ इस प्रकार है....

जीवन के टुकड़ों को कहाँ तक ढूंढीयेगा,
हर तरफ बिखरे हुए ही पायेंगे,
जीवन को मोतियों की माला समझ लीजियेगा,
सारे एक धागे में पिरोकर आयेंगे.

साभार
हमसफ़र यादों का.......

ओम आर्य said...

bahut khub......ek behtreen rachanaa

جسوندر سنگھ JASWINDER SINGH said...

bahut khoob manvnder ji
dil ki avaaj jo kavita ban gyee

Drmanojgautammanu said...

जिन्दगी के कुछ टुकड़े बहुत सन्दर रचना है तथा जिन्दगी के सफर की सुन्दर अीीाव्यक्ति है । सादर, धन्यवाद!

Asha Joglekar said...

इन्हीं टुकडों के कोलाज को जिन्दगी कहते हैं शायद ।

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

kya kahu mai !!!!!!!!!!111 shabd hi nhi mil rahe muze to...........

sandhyagupta said...

जिस घड़ी हमने हंसना था खिलखिला कर

उस घड़ी हमने अपने सांसों की आवाज को
अपनी मुठ्टी में कस कर पकड़ लिया
और देखते रहे ---सूरज का बेअवाज सफर पड़ों की बेआवाज सरसराहट

Behad umda.Yun hi likhte rahiye.

gs panesar said...
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gs panesar said...

jab insaan ke tukde hote hain voh utna hi shaktishali ban jaata hai...kyonke "ek bhi khud aur anek bhi khud"