Saturday, July 12, 2008

पापा के पचास दिन

पचास दिन के बाद डा तलवार रिहा हो गये। आरूिश के पिता डा तलवार। एक खबर, लेकिन इस खबर के पीछे का सच कोई जान नहीं पायेगा। अब कोई कहेगा कि यू पी पुलिस को जवाब देना चाहिए। कोई कहेगा कि सीबीआई ने बहुत अच्छा किया है। इस पूरे प्रकरण में मुख्य बात है वो दर्द जो डा नुुपुर ने बेटी को खो देने के बाद अकेले झेला क्योंकि डाक्टर तलवार भी जेल में थे, उधर डाक्टर तलवार ने भी इस दुख को अकेला झेला क्योंकि बेटी को तो खो दिया, साथ ही बेटी की हत्या का आरोप भी झेला। तलवार दंपत्ति की इकलौती संतान थी आरूिश। ‘ााष्विवाह के चौदह साल के बाद आरूिश का जन्म कई इलाजों , मन्नतों और दुआयों के बाद हुआ था। आरूिश टेस्ट ट्यूब बेबी थी, मात्रा चादह साल की, जिसने दुनिया को ठीक से देखा भी नहीं था। उस पर क्या क्या नही दिखाया गया मीडिया में। इसमें मीडिया का रोल भी संवेदनाअों से परे चला गया। कभी आरूिश के बलात्कार की नई खोज की खबर तो कभी डाक्टर तलवार के डाक्टर दुरानी के साथ नाजायज संबंधों की खबर। आखिर होड़ यह थी कि कौन कितनी पहले खबर प्रसारित करता है। किसी ने यह नहीं सोचा कि सामान्य बाप अपनी बेटी को क्यों मारेगा? वह बेटी जो चौदह सालों के बाद उन्हें नसीब हुई। किसी को यह समझ नहीं आया कि आरूिश कोई बड़ी गलती भी करती तो भी डाक्टर तलवार उसे मारना तो क्या, डांटते भी नहीं। जब से डाक्टर तलवार को सीबीआई ने आरोपों से बरी कर दिया , उसी पल से सारी खबरों में डाक्टर तलवार के प्रति अपनापन दिखने लगा। सवाल यह है कि वो पचास दिन तलवार दंपत्ति के जीवन में कैसे वापस आयेंगे जो उन्होंने मानसिक यातना में गुजरो है। कभी मान को ठेस तो कभी मन को ठेस।

3 comments:

रंजू भाटिया said...

जो भी सच है वह बहुत दुखद है ...

Anonymous said...

kismat kaa likha mityae nahin mittaa hean

दिनेशराय द्विवेदी said...

रचना जी ने इसे किस्मत का लिखा कहा जो हमारे समाज की विकृति है। समाज को बदल कर इस किस्मत को बदला जा सकता है।