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Saturday, January 7, 2012
अपनों की दरिंदगी ......
शाम को न्यूज रूम में प्रेमी प्रेमिका के मर्डर पर काफी चर्चा हो रही थी। प्रेमी देवेंद्र ऑन स्पाट मर गया जब कि प्रेमिका सरिता जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। तभी सोच लिया कि सरिता से मिलने जाना ही है।
अगले दिन, सुबह की मीटिंग में मैने सरिता को ले कर स्टोरी भी परपोज कर दी थी।
मीटिंग के बाद सीधे मेडीकल कालेज की एमरजेंसी में पहुंची। बाहर एक स्टूडेंट डाक्टर धूप सेक रहा था। मैंने उससे पूछा, सरिता इसी वार्ड में हैं क्या,
वो ही जिसका प्रेमी गोलियों से छलनी होने के बाद स्पॉट पर ही मर गया है।
मेरा जवाब सुने बिना ही उसने कहा, सीधे जाईए, पहले बेड पर सरिता ही है।
मैं पहुंची तो सरिता अपने पास बैठे पुलिसिए से धीरे धीरे बोल रही थी। मैंने भी उसकी बात सुननी
शुरू कर दी।
जहां से मैंने उसकी बात सुननी शुरू की---
बे तो हम्मे मारन को कई दिनां से फिराक में थे, पहले कंकरखेड़ा में, बाद में भी हमला किया, बाद में गाम्म में भी हमला किया, हमने थानेदार धोरे शिकायत की कि हमें खतरा है, म्हारी मदद की जाए लेकिन किसी ने सुनी नहीं।
तक तक सरिता को अहसास हो गया कि कोई उसकी पीठ की ओर भी खड़ा है। उसे उल्ट कर देखने में मुश्किल हुई तो मैं उसकी करवट वाली साइड पर आ गई। मुझे देख दीवान जी ने कुर्सी छोड़ दी और बाहर को चला गया।
अब सरिता मुझसे खुल कर बात कर सकती थी।
मैंने पूछा, जब तुम्हें खतरा था तो तुमने कोई दूसरा शहर क्यों नही चुना, रहने के लिए, और तुमने अपने पति को क्यों छोड़ दिया। तुम्हारी तो तीन साल की बेटी भी है।
वो थोड़ी सी थमी और बोली, मेरी मर्जी से शादी कहां हुई थी।
दुनिया में सब की शादियां क्या मर्जी से होती है, क्या वे औरतें पति संग रहती नहीं है क्या ?
मेरी बात पर ज्यादा गौर किए गौर किए सरिता बोली,
मुझसे मेरा पति दहेज की मांग करता था लेकिन मेरे दहेज की मांग को देवेंद्र पूरा करता रहा। मांगे पूरी होने पर भी पति मुझे मारपीट कर मायके छोड़ गया तो मायके में रहना मुश्किल हो गया।
मायके आ कर तुम्हे देवेंद्र कहां मिल गया।
सरिता बोली, देवेंद्र तो पहले से ही मेरी जिंदगी में शामिल था लेकिन हमारे कोई ऐसी बात नहीं थी जिसे बुरा कहा जा सके।
तो फिर तुम्हारे भाईयों को देवेंद्र से क्यों चिढ़ हुई।
मेरे भाई तो उस दिन से देवेंद्र से चिढ़ते थे, जिस दिन से उन्होंने मुझे देवेंद्र के साथ बात करते देखा।
अरे मैंडम, आप पहले यह बताओं आप हो कहां से ?
मैंने बताया, अखबार से।
नू कहो न, प्रेसरिपोर्टर हो।
मैंने हां में सिर हिला दिया।
अब वो और भी अधिक सहज हो गई।
सरिता ने जो बताया, उसे आप यह इस तरह से न ले कि यह कहानी मंटो या इसमत आपा की नकल करने के लिए लिख रही हूं लेकिन जब मैंने सुना तो मैं भी एक बार अस्पताल के स्टूल से उछल गई।
सरिता ने बताया, वो उस समय से भाईयों की मार खाती आ रही है, जब से उसने होश संभाला है। बेबात पिटती रही। मां अपने बेटों पर नाज करती और उसे सर्द रातों में बिना रजाई से घेर में सोने भेज देती। जब जरा समझ आयी तो उसकी हालत पर देवेंद्र को दया आने लगी। वह उसके दुख दर्द सुनता। ऐसे ही एक दिन देवेंद्र से बात करते हुए भाईयों ने देख लिया। उसके बाद भाईयों ने देवेंद्र पर रेप का केस लगवा कर जेल करा दी। तब मुझे भी देवेंद्र की चिंता हुई। इसी बीच वकील आया और उसने कहा कि लड़की की डाक्टरी होगी।
आधे घंटे बाद मेरी मां कमरे में ले जा कर ने मुझे जोर से धक्का दिया और भाई के सामने गिरा दिया। भाई मेरी टांगों में था और मां ने मेरी सलवार का नाला तोड़ दिया। भाई बोला, अब तेरी डाक्टरी रिपोर्ट में रेप की तकसीद भी हो जाएगी, चल मैं बांधता हूं देवेंद्र का इलाज, उसे जेल से बाहर नहीं आने देना चाहे मुझे कुछ भी करना पड़ जाए। मां ने मेरी दोनों बाहों पर अपने पैर रख दिए और भाई मुझ पर झुकने को हुआ। पता नहीं मुझ में कहा से शक्ति आ गई और मैं दौड़ कर दादी की कोठरी की ओर भागी। घेर में आसपास के सभी लोग इक्ठा हो गए। मेरे मुंह से तो आवाज ही गायब हो गई। किसी को भी बताती सगे भाई और मां का किया धरा तो कोई भी यकीन नहीं करता।
इसके बाद मुझे घर में नजर बंद कर दिया और मेरी शादी तय कर दी।
केस चला और जिस दिन मेरी गवाही होनी थी, मेरी सुबह बहुत पिटायी हुई कि जो मुंह गलत खोला तो जुबान मुंह में नहीं रहने देंगे। लेकिन मैंने कोर्ट में गवाही दी कि मेरा रेप नहीं हुआ है, चाहों तो मेरा मेडिकल करवा लो। और देवेंद्र जेल से छूट गया।
आप ही बताओं, मैडम इसके बाद क्या कोई किसी के किए को भूलता है।
कुछ दिन बाद ही मेरी शादी जबरन कर दी गई। मैंने सोचा कि मेरा नरक छूट गया लेकिन अभी मेरे हिस्से का नरक बाकी था। दहेज की मांग शुरू हो गई। दहेज की मांग भी देवेंद्र ही पूरी करता।
आप बताओ, पति अगर घर से निकाल दे तो लड़की कहां आती है, मां बाप के पास न , मैंने भी यही किया लेकिन मुझे दो चार दिन में मायके से मारपीट कर निकाल दिया गया।
मैं रेलवे स्टेशन पर अपनी किसमत को कोस रही थी कि देवेंद्र ने अपनी बहन को मुझे लेने भेजा। मैं देवेंद्र के घर आ गई। यहां एक साल से थी। जनवरी में ही आयी थी। जब देवेंद्र को पता चला कि वह उसके बच्चे की मां बनने वाली है तो वह बहुत खुश था। देवेंद्र के घर में सभी खुश थे। लेकिन जब मेरे गर्भवती होने की बात भाईयों को पता चली तो वे मारने के लिए आ गए।अभी एक महीने पहले भी हमला किया था, कल सुबह तो वे ठान कर ही आए थे कि आज नहीं छोड़ना है दोनों को।
और वही हुआ,
देवेंद्र तो मौके पर ही मारा गया लेकिन मैं बच गई , पता नहीं अभी और क्या क्या सहना है। देवेंद्र कहता था, मेरे बच्चे का ख्याल रख लेना। अपने पेट पर हाथ रख कर कहती सरिता ने ठंठी सांस भरी, पता नहीं मैं भी जिंदा बचती हूं या नहीं। और मेरे भाई की दरिंदगी.. .. .. .पता नहीं कितने बहनें चुपचाप सह रही हैं हमारे आसपास के समाज में।
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