मैं एक
दिन धूप में
घर की
दीवारों पर बैठ
घर की
दीवारों की बातें
उसे सुना
बैठा
और उसका
हाथ
दीवार से
हमेशा के लिए
हटा बैठा
उसका साथ
दीवारों
से हमेशा के लिए
गवां
बैठा
वो घर
छोड़ने से पहले
उस दिन
हर कोने
में घूमा
और गारे
में खांस रही
बीमार
इंटों के गले मिला
और उस
मनहूस दिन के बाद
वह कभी
घर न लौटा
अब रेल
की पटरी पर जब कोई
खुदकुशी
करता
या
साधुओं का टोला
सर मुड़ा, शहर में घूमता है
या
नकसलवादी
कत्ल
करता है
तो मेरे
घर की दीवारों को
उस समय
ताप चड़ते हैं
और बूढ़े
घर की बीमार
इंटों का
बदन कांपता है
(एक दोस्त का दर्द मेरी डायरी से )
(एक दोस्त का दर्द मेरी डायरी से )
4 comments:
बहुत बढ़िया ...
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