Thursday, December 17, 2009
उस खबर के अक्षर और उनकी अजमत
Thursday, December 10, 2009
ये भी भला कोई वक्त है ......अब आने का
Thursday, November 26, 2009
पापा ........मेरे प्यारे पापा
Saturday, November 7, 2009
अनब्याही बातों के ख्वाब
वो अपनी आदत से बहुत मजबूर है। अनब्याही बातें उसे बहुत परेशान करती हैं। सपनों को काढ़ने वाले धागों के लिए वह हमेशा पक्के रंगों की दुआ करती रहती है। किसी के दुख को पता नहीं कैसे अपने भीतर उतार लेती है। दो अलहड़ प्यार करने वालों को उसने बहुत पास से जाना था। बहुत प्यार, बेहइंतहा प्यार। जब एक संग होने का वक्त आया तो वक्त भी एक तरफ खड़ा हो कर जन्म देने वालों का फैसले को सुनने लगा। काफी देर तक तो वक्त ठहरा रहा, फैसला ठहरा रहा। आग का दरिया पार करने का जुनून था लेकिन आग के दरिया के किनारों पर खड़े हो कर मुहब्बत को उसमें ढूबते और बह जाने को वे दोनों देखते रहे। थक कर अपने अपने रास्तों पर चले गए। सपने काढ़ने वाले धागों के रंग पता नहीं कैसे निकले
ये कोई नई बात नहीं है, ऐसा प्रेम करने वालों के साथ होता आया है। किसी की मुहब्बत ढूब जाए तो जमाना तो चलना बंद नहीं करता है। वो अपनी रफ्तार से चलता रहता है। वो, उनके प्यार की गवाह, पता नहीं कब बारी बारी उनके दिल में उतरती रही, उनकी जगह खुद को रख कर देखने लगी। बहुत बड़ा दर्द का समंद्र उठ रहा था। उसमें गिले शिकवे थे, उन लोगों का जिक्र था जिन्होंने उन्हें रोक लिया आग के दरिया में उतरने से पहले ही। दोनों जात और बिरादरी की लड़ाईयों को देख कर पीछे की ओर मुड़ गऐ। कमजोर कोई नहीं था लेकिन दर्द और भी थे जमाने में। वो तो वहीं ठहर गए लेकिन उनके दिलों का दर्द अब कभी किसी गांव तो कभी किसी ‘ाहर में घूमता रहता है।
और उसे.... अनब्याही बातों के ख्वाब बुनने वाले उल्हड़ प्रेमी पता नहीं कब तक परेशान करेंगे।
Monday, August 31, 2009
ये बातें अमृता के साथ हैं या उन फूलों के साथ
Monday, July 27, 2009
........लेकिन पानियों पर चलने को राजी नहीं होते कदम ....
Tuesday, July 14, 2009
मैं क्या बोलूं .....मेरे पेरों तले की जमीं चोरी हो गई है ...
Friday, July 10, 2009
शुक्रिया ... ......आपने मुझे याद रखा
Sunday, June 28, 2009
......और नज्म अडोल खड़ी रह गई
Wednesday, June 24, 2009
उधड़े हालात सिलती ... ........वो लड़की
Sunday, May 24, 2009
जिन्दगी के कुछ टुकड़े ......जो गिर गए कहीं
Monday, May 4, 2009
पेड़ .......जिस पर अभी अभी बौर आया
मेरे शहर में एक प्यारी सी लड़की थी ......डी फार्मा की छात्रा , जिसने प्यार में धोखा मिलने पर अपनी जान गंवा दी। अपने प्रेमी के लिए उसका आखिरी नोट कुछ इस तरह से था............''मैं तुम्हें प्यार की तरह से प्यार नहीं करती , मैं तुम्हें देवता समझती थी। तुमने शादी करके दिखा दिया कि प्यार हमेशा बराबर वालों के साथ किया जाता है। हम ही गलत थे। एक बार यह तो देख लेते, तुम हमारे दिल में किस जगह रहते थे।''
.......... पता नहीं उम्र कच्ची थी या प्यार का रंग लेकिन प्यार रूसवा हो गया।
अरसा पहले एक नज्म यूं ही लिखी थी, नहीं जानती आज क्यों फिर वह नज्म जेहन में हावी हो रही है।
एक ख्याल
उगते सूरज सा ख्याल
पहली बार ख्याल से सामना हुआ
उस पेड़ के नीचे
जिस पर अभी अभी बौर आया था
ख्याल बौर से खेलने लगा
वो तपती दोपहरी थी
ख्याल के साथ आन खड़ा हुआ एक साया
हवा चली
बौर के कुछ अंश साये पर बिखरे
साये में कंपन हुआ
कायनात महक उठी
डाल पर बैठा परिंदा देख रहा था
कंपन
कायनात का महकना
और दूर से आता तूफान (अगला अंश फिर कभी ..................)
Sunday, April 26, 2009
टेड़ी सिलायी उधड़ा बखिया ...ये जीना भी कोई जीना है
Monday, April 20, 2009
वक्त खड़ा देखता रहा खुले जख्म को.........
चुप सी रात में
यादों के रेले में
अंदर कुछ तिड़का
वो जख्म खुल गये थे
जो सिल दिये वक्त ने
रेले से एक साया निकला
हाथ बढ़ा कर
उसने जख्मों से धागा निकाल दिया
वक्त खड़ा देखता रहा खुले जख्म को
और साया रेले में गुम हो गया
Friday, April 10, 2009
अक्षर......जो भीतर में उतर आते हैं.......
Wednesday, April 1, 2009
रह गया तेरे होने का जिक्र.........
रह गया तेरे होने का जिक्र
बन गया खामोश अहसास
अब तो आदत सी हो गई है इस जिक्र की
क्योंकि ये हर वक्त साथ साथ चलता है
कभी ये मेरे दिल में उतरता है
और मुझसे बातें करता है
बात करने का मन हो न हो
यह बात करता है ,तेरे होने की
Tuesday, March 31, 2009
सुरों की धुनों पर ........
Thursday, March 26, 2009
अक्षरों का यथार्थ ............
Sunday, March 22, 2009
जिंदगी रख के भूल गई है मुझे
जिंदगी रख के भूल गई है मुझे
और मैं जिंदगी के लिये
बह्मी बूटी खोज रही हूं
मिले तो जिंदगी को पिला दूं
और वो मुझे याद कर ले