
तुम अपनी भावनाओं को कितनी चालाकी या समझदारी से छिपा लेते हो ...... याद है ....स्टेशन पर जब एक डोगी रेल से कट कर दो टुकड़ों में तड़प रहा था ....मेरा तो हाल खराब हो रहा था .....दिल में घबराहट से बुरा हाल हो रहा था .....गले में बोल अटक रहे थे ......हाथ से चाय का गिलास गिर गया .... यूँ कहूँ की मैं अपनी घबराहट छिपा नहीं पा रही थी ......तुम शांत दिख रहे थे......कहीं तकलीफ तुम्हें भी थी ..... एक बेजुबान की हालत पर ......लेकिन तुमने केवल इतना ही किया .....अपनी चाय को शांत भाव से रेलवे ट्रेक पर गिरा दिया और प्लेटफार्म की बेंच पर बैठ गये...... ____ बस यूँ ही याद आ गयी इस घटना की .........
5 comments:
हम्म्म!!
निस्संदेह कष्ट तो आप जैसा ही था :-(
चालाकी शब्द खटक रहा है ...
शुभकामनायें !
बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
बस यूँ ही जो कह जाती हैं वह खूबसूरत अन्दाज़ याद रह जाता है...
यादें कभी पीछा नही छोदती यूँही चली आती हैं सुन्दर अभिव्यक्ति।
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