मेरे साथ ही क्यों , अकसर कवरेज कर रहे मीडिया परसन को ऐसी दिक्कत आती होगी , जैसे कि शनिवार की शाम को मैंने फेस की।
10 अप्रैल की शाम को विक्टोरिया हादसे की चौथी बरसी का आयोजन था। शहर भर के लोग हादसे में चले गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए एक दीप समाधिस्थल पर जलाने के लिए पहुंचे हुए थे। वहां वो लोग भी थे जिनके घर से परिजन हमेशा के लिए जुदा हो चुके थे। अपनों को गंवा चुके लोगों की आंखों के आंसू थे कि थम नहीं रहे थे। बेहद गमगीन माहौल में मैं एक पल को भूल गई कि मुझे इस मौके की कवरेज भी करनी है। मन बेहद भारी हो उठा। मेरी बगल में आंसू पौछती महिला मुझसे बोली, क्यांे आप इस दिन को अखबार की सुर्खियां देते हों। क्यों हमारे जख्मों को कुरेदते हो, प्लीज हमें हमारे दुखों के साथ जीने दो।मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसकी बात में क्या सफाई दूं, क्या जवाब दूं।
तभी मेरी नजर कुछ छोटे बच्चों पर गई जो समाधिस्थल पर फूल चढा रहे थे, कैंडल जला रहे थे। कभी नही आने वाले इनके परिजन जरूर इन्हें देख रहे होंगे कि ये बच्चे सच्चे मन से उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं।