मुद्दत बाद ......उम्रें ठहर गईं
उनकी नजरें मिलीं .......एक दूसरे को देखा , जैसे तपती गर्मी में ठन्डे पानी के घूंट भर लिए हों ।
पर ये क्या , उनकी प्यास तो वैसे ही धरी हुई थी ।
वो दिन , वो घडी , वो पल ऐसे गुजरा जैसे वो मेले में हैं ..... मेले के हिंडोले में अपनी उम्रों को बैठा कर हिलोर दे रहें हों । और वो दोनों उस पल, उस घडी और उस दिन के देनदार बन गये । अगले ही पल उन्हें हिंडोले से उतरना था । मेले से चले जाना था । उन्हें गम नहीं था । उन्होंने मेला मना लिया था । मेले की मिठाई चख ली थी । अब तो उन्हें अपने-अपने अरमानों की तह लगा कर रखनी थी।
फोटो गूगल से साभार