Saturday, December 4, 2010
बच्चे बने रहना कितना अच्छा है न .......
Tuesday, August 31, 2010
इमरोज की नजर में अमृता

Wednesday, July 28, 2010
दिल डरता है जवाबों से....
Friday, July 23, 2010
बिरहा के सुल्तान शिव तुम्हें लूना याद करती है ........

Saturday, June 5, 2010
देवता तो हमारे अन्दर ही बसते हैं ....नजर की जरूरत है

Sunday, April 11, 2010
एक याद ....एक दीप ....एक टीस....

Sunday, April 4, 2010
कोई अधिकार नहीं..... कोई उलाहना नहीं
दरअसल , मैं अंदर से और ----बाहर से और -----हो कर जीना नहीं चाहती, इसी लिए मैंने उस गांठ को खोल दिया है जिसके अंदर रह कर मैं कुछ और रहती हूं, बाहर रह कर कुछ और। मैं आंखें बंद कर के कुछ और सोचती हूं और आंखें खोल कर कुछ और देखती हूं। ऐसी गांठों को खोलना आसान नहीं होता है लेकिन अब मैंने इन्हें खोल दिया है, कई warsh लगा दिए इस गांठ को खोलने me .......अब जो मैंने किया है, वह केवल इस लिए,ताकि मैं किसी और से , खुद से झूठ न बोलूं ....... तुम्हारे साथ गुजारा हुआ वक्त अब मुझे सपने में भी नहीं सोचना है। यह सब मैं अपने लिए कर रही हूं। अपनी आत्मा को दागी होने से बचाने का एक प्रयास है। औरत का इससे बड़ा दुख और कुछ नहीं हो सकता है कि उसके सपनों को उसकी जुबान के सामने मुकरना पड़े। मुझे दुनिया के सुखों की चाह नहीं हैं। मेरे मन के सुख मेरी तरह से कुछ अनोखे हैं। षायद तुम समझ पाते । समाज के कानून से लिथड़ी हुई त्यौरियां मैं सहन नहीं कर सकती। आज तुम बेखबर हो कर सोए हुए हो। ऐसा लगता है जैसे तुमने कालों के बाद ऐसी नींद ली है। तुम्हारा चेहरा कह रहा है, तुमने सालों बाद भूख का व्रत तोड़ा है क्योंकि एक भरपूरता चमक रही है। ----------------- दोस्त की डायरी के कुछ अंश
Wednesday, March 31, 2010
मुद्दत बाद .....उम्रें ठहर गईं

Monday, March 29, 2010
अपनी आंख के श्राप को क्या कहूँ .....

Friday, March 26, 2010
दो सहेलियां ....एक देह में रहती हैं
Thursday, February 18, 2010
उसकी प्यास न पानी बनी न आग
उस रात .....................
वो अकेली नहीं ...........................
उस के साथ रात भी जली थी .......................
मैंने उसे आग अर्पित की ..........................
वो और भी सर्द हुई ................................
समन्दर की बात की .............................
तो वो और भी खुश्क हुई ................................
उस की प्यास न पानी बनी ................................
ना आग .....................................
उसके दोष अँधेरे नहीं .................................
रौशनी थे ..............................
उसकी भटकन केवल रिद्हम थी ............................
जब साज निशब्द हुए ..................................
तो वो मीरा बनी ...................................
राबिया हुई ...................................
आखिर .........................................
मंदिर का प्रसाद हुई .........................................
मस्जिद की दुआ हुई ...................................................
पत्र का शीर्षक क्या होगा ?
Tuesday, January 26, 2010
इमरोज ......इक लोकगीत सा
Tuesday, January 5, 2010
अब वो शांत था ......
