Thursday, November 26, 2009
पापा ........मेरे प्यारे पापा
Saturday, November 7, 2009
अनब्याही बातों के ख्वाब
वो अपनी आदत से बहुत मजबूर है। अनब्याही बातें उसे बहुत परेशान करती हैं। सपनों को काढ़ने वाले धागों के लिए वह हमेशा पक्के रंगों की दुआ करती रहती है। किसी के दुख को पता नहीं कैसे अपने भीतर उतार लेती है। दो अलहड़ प्यार करने वालों को उसने बहुत पास से जाना था। बहुत प्यार, बेहइंतहा प्यार। जब एक संग होने का वक्त आया तो वक्त भी एक तरफ खड़ा हो कर जन्म देने वालों का फैसले को सुनने लगा। काफी देर तक तो वक्त ठहरा रहा, फैसला ठहरा रहा। आग का दरिया पार करने का जुनून था लेकिन आग के दरिया के किनारों पर खड़े हो कर मुहब्बत को उसमें ढूबते और बह जाने को वे दोनों देखते रहे। थक कर अपने अपने रास्तों पर चले गए। सपने काढ़ने वाले धागों के रंग पता नहीं कैसे निकले
ये कोई नई बात नहीं है, ऐसा प्रेम करने वालों के साथ होता आया है। किसी की मुहब्बत ढूब जाए तो जमाना तो चलना बंद नहीं करता है। वो अपनी रफ्तार से चलता रहता है। वो, उनके प्यार की गवाह, पता नहीं कब बारी बारी उनके दिल में उतरती रही, उनकी जगह खुद को रख कर देखने लगी। बहुत बड़ा दर्द का समंद्र उठ रहा था। उसमें गिले शिकवे थे, उन लोगों का जिक्र था जिन्होंने उन्हें रोक लिया आग के दरिया में उतरने से पहले ही। दोनों जात और बिरादरी की लड़ाईयों को देख कर पीछे की ओर मुड़ गऐ। कमजोर कोई नहीं था लेकिन दर्द और भी थे जमाने में। वो तो वहीं ठहर गए लेकिन उनके दिलों का दर्द अब कभी किसी गांव तो कभी किसी ‘ाहर में घूमता रहता है।
और उसे.... अनब्याही बातों के ख्वाब बुनने वाले उल्हड़ प्रेमी पता नहीं कब तक परेशान करेंगे।